आज तुम्हारी खिड़की छनकर रोशनी आ रही है
लगता है जैसे तुम अभी नहाकर बाहर आ रही हो
अलसाई सी बाहों को उठाकर गिराना
समुन्द्र की लहरों सा उठना मचलना
लगता है तुम यूँ ही कुछ शर्मा रही हो
सुर्ख आँचल का कोना मुँह में दबाना
आँखों को झुकाना उठाना फिर शर्माना
पलकों की चिलमन उठाकर करीब आ रही हो
न जाना दूर कभी भी तू मुझसे खफा होकर
टूट जाऊँगा मै तुमसे जुदा होकर बिखरकर
दिल मेरा तुम रह रहकर क्यों धड़का रही हो
@मीना गुलियानी
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