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रविवार, 29 मई 2016

मौत भी नहीं आती

साँस लेना भी जुर्म है शायद
जिंदगी ऐसे भी जी नहीं जाती

एक टूटा हुआ ख़्वाब सा हूँ मै
यह गली अब कहीं नहीं जाती

रात भर दिल मेरा जलाती है
चांदनी घर क्यों नहीं जाती

एक अादत सी बन गई है तू
बदलूँ तो भी बदली नहीं जाती

इस तरह जिऊँ भी तो कैसे जिऊँ
मॉँगने से मौत भी नहीं आती
@मीना गुलियानी 

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