सोमवार, 31 दिसंबर 2018

मुझको याद आना नहीं

तुम अगर आ सको तो आ जाओ
आके फिर दूर मुझसे जाना नहीं

है फिक्रमंद जिंदगी अपनी तो क्या
तू मगर इसका रश्क खाना नहीं

 मेरा दिल गर तुम्हारे ख़्वाब में डूबे
तुम मुझे नींद से कभी जगाना नहीं

गर तुम कभी भी मुझसे दूर हो जाओ
कसम तुम्हें है मुझको याद आना नहीं
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 29 दिसंबर 2018

दीदार करता हूँ

तुमसे मिलकर ख़ुशी है मिल जाती
मैं तुम्हें अब भी याद करता हूँ

तुम्हें ख़्वाबों में देखता हूँ अक्सर
बिन तेरे मैं बहुत उदास रहता हूँ

सोचता हूँ गुज़री ये जिंदगी कैसे
तुझपे मैं जां  निसार करता हूँ

तुम बिन जिंदगी वीरान है मेरी
दिल के आईने में दीदार करता हूँ
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

उसे धिक्कारेगा

सोचती हूँ आज का मानव भी
कैसा  निर्मम ,निष्ठुर,कामपिपासु
 हो गया है उसकी अंतर्मन की दशा
उसे निम्नस्तर पर लिए जा रही है
 वह  जघन्य अपराध कर  बैठता है
उसकी आत्मा क्या मर चुकी है
केवल नारी देह की लोलुपता ही
उसे आकर्षित करती है उसमें उसे
माँ बहिन की छवि नज़र नहीं आती
नारी केवल भोग्या नहीं है
वो शक्ति स्वरूपा भी है
उसमे दया ,ममता,प्रेम भी है
वो अबला नहीं सबला भी है
पुरुष कामासक्त होकर असुर हो जाता है
उसे अपनी मनोवृति बदलनी होगी
नहीं तो केवल समाज ही नहीं
समूचा राष्ट्र इस जघन्य
कृत्य के लिए उसे धिक्कारेगा
@मीना गुलियानी

हाथ थामे और खो जाएँ

चलो हम सुंदर सा आशियाना बनायें
फूलों की सुरभि से इसे हम महकायें
शीतल बयार के झोंकों से प्रदूषण भगाएँ
इंद्रधनुष और तितली के रंगों से सजाएँ
तिनका तिनका चुनें और इसे बनायें
भंवरों की गुंजन से इसमें संगीत गुंजायें
बच्चों की किलकारियों से खिलखिलाएं
हर ग़म को अपने से दूर हम भगाएँ
सुन्दर सपनों की दुनिया में खो जाएँ
दिल में उमंगों के झरनें हम बहाएँ
खुशियों की तरंगों में हम झूम जाएँ
आकाश तक ऊँची प्रेम पींगें बढ़ाएँ
हाथों में हाथ थामे और खो जाएँ
@मीना गुलियानी

मंगलवार, 25 दिसंबर 2018

बसा लूँ तो क्या हो

बड़ी कातिल है ये तेरी बेवफाई भी
ये दिल किसी से लगा लूँ तो क्या हो

तेरे दूर जाने से जिंदगी वीरान है
चिराग दिल के जला लूँ तो क्या हो

दुनिया ने कितने ज़ख़्म मुझको दिए
उन पे मरहम लगा लूँ तो क्या हो

चाहती हूँ ज़िंदगी याद में तेरी कट जाए
मैं तुझे अपने मन में बसा लूँ तो क्या हो
@मीना गुलियानी 

जल रही होगी

चाँद छुप गया है बदली में
अब वो पहलू बदल रही होगी

सुबह के वक्त इन्हीं वादियों में
वो मेरे साथ चल रही होगी

घने पेड़ों की घनी छाँव तले
उसकी हसरत मचल रही होगी

शाम को झिलमिलाते सितारों तले
दबे पाँव घास पे वो चल रही होगी

रात होने को आई है अब तो
झरोखे में कंदील जल रही होगी
@मीना गुलियानी 

रविवार, 23 दिसंबर 2018

बिन मेरे गुज़र तेरा

दरिया किनारे पे भी प्यासा मैं रहा
तुम लहर बनकर मचलती ही रही

तुम मुझसे बहुत दूर चले आए
उम्मीद की शमा भी बुझने चली

मेरा तुम जिक्र न करना किसी से
रह गया रिश्ता क्या अजनबी से

अगर ढूँढ लेते तो मंजिल भी पा जाते
तुमने ढूँढना चाहा ही नहीं पता मेरा

दुआ तुम करो निज़ात पाने की
हो न पायेगा बिन मेरे गुज़र तेरा
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 22 दिसंबर 2018

आ जाओ

मेरे  दिले नादाँ ने पुकारा तुमको
सदा तुम  सुनके इसकी आ जाओ

दुनिया से कुछ नहीं शिकवा है मुझे
तुमसे शिकवा है मुझको आ जाओ

वही एहसास वही कशमकश ज़ारी है
दिल की तिश्नगी मिटाने आ जाओ

जिस घरौंदे  को हमने  बसाया था
वो बिखर  न जाए कहीं आ जाओ
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

गीत ख़ुशी के गाएँ

आज सूरज तपा नहीं सर्दी ने जकड़ा बदन
सुबह की सर्द हवा ने बढ़ाई दिल की धड़कन

ठण्ड में याद आया हमको फिर गर्मी का मौसम
न थी ठिठुरन न इतने लबादे ओढ़ते थे हम

अब तो पानी पीते भी याद आती है नानी
सुबह पानी से अच्छी लगती चाय बनानी

सुबह हमेशा नहाने को चाहिए गीज़र का पानी
उसके बिना तो  ऐसा लगता शामत पड़ी बुलानी

अच्छी लगती मक्की की रोटी साग और गुड़ धानी
पुआ पराँठे पीछे छोड़े चाहे मुँह से टपके पानी

बच्चे धमाचौकड़ी करते घर से बाहर जाकर
हमको खाट है अच्छी लगती और हमारा बिस्तर

गर्मा गर्म पकोड़े और मूँगफली इतनी मन को भाए
चाहे जितनी भी हम खाएँ मन भूखा ही रह जाए

अगर धूप निकल आये तो जाड़ा हम दूर भगाएँ
सबसे प्यारा लगे ये मौसम गीत ख़ुशी के गाएँ
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

तलाश में बढ़ते चलो

जीवन इक बहता हुआ दरिया है
इसे बहने दो
सुख दुःख का मधुर मिलन होता है
उसे होने दो
मौजों को साहिल से टकराना होता है
उन्हें टकराने दो
तुम क्यों उदास मन लिए
गुमसुम से बैठे हो
जीवन से हार न मानो
नहीं तो टूट जाओगे
अथक परिश्रम करते चलो
मंजिल की तलाश में बढ़ते चलो
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 3 दिसंबर 2018

अगवानी में प्रतीक्षारत हूँ

फूलों से कहो -
अपने पराग  से सजाएँ पालकी
वृक्षों से कहो -
अपनी हरियाली से सजाएँ पालकी
आकाश से कहो -
चाँद सितारों से सजाएँ पालकी
बादलों से कहो -
इंद्रधनुष से सजाए पालकी
इस पालकी पर मेरी प्रियतमा जब आए
द्वार पे बंधनवार बांधे
सुहागिनें मंगलगान गाएँ
उसकी आरती उतारें
फिर वो देहरी लांघकर
मेरे अंतर्मन में प्रवेश करे
मैं पलकें बिछाए हुए
उसकी अगवानी में प्रतीक्षारत हूँ
@मीना गुलियानी 

रविवार, 2 दिसंबर 2018

हँसके सहती है

नारी है शमा की जैसी
जो सदैव ही है जलती
एक सांचे में है ढलती
जीवन प्रकाशित करती
कितनी यातनाएँ सहती
पर उफ़ न कभी करती
उसके दर्द को किसने जाना
किसने उसको पहचाना
वो रोज़ फ़ना होती है
मन ही मन में रोती है
देती है सबको खुशियाँ
हर ग़म हँसके सहती है
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 1 दिसंबर 2018

हम भी हँसे मुस्कुराएं

लगता है समुंद्र का पानी गहरा हो गया है
तेरा मेरा रिश्ता भी गहरा हो गया है
लोगों की निगाहें भी अब उठने लगी हैं
सितारों की आँखें भी झुकने लगी हैं
जुल्फों पे बादल का पहरा हो गया है

तमन्नाओं के सावन तो बरसते रहेंगे
फूल इन बहारों के महकते ही रहेंगे
गुलशन में हमेशा ही बहारें रहेंगीं
जिंदगी  का हर पल सुनहरा हो गया है

यादों से कोई कहदो अब वो लौट जाएँ
तमन्ना से कहदो वो महफ़िल सजाएँ
गुज़रे वो पल लौट आये हैं अब तो
चलो थोड़ा सा हम भी हँसे मुस्कुराएं
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

बहकने लगी हैं

तेरे काजल की रेखा चमकने लगी है
बादल से बिजुरिया दमकने लगी है

तेरे होंठ कहते हैं गुज़री कहानी
अलसाई शाम महकने लगी है

पत्ता पत्ता बूटा बूटा सुनाएगा दास्तां
शबनम मोती बनके दमकने लगी है

क्या पता लौटना फिर न हो दुबारा
उमंगें सावन में बहकने लगी हैं
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 29 नवंबर 2018

जा चला जा उसके पीछे

ओ  चंदा तू समझ ले मत झाँक तू इधर रे
जब आएँ मोरे सैंया तभी आना तू नज़र रे

बदरी में जाके छुप जा कहीं पर्वतों के पीछे
काहे छुपके मुझे देखे तू नज़र झुकाके नीचे

ये नज़ारे प्यारे प्यारे किस काम के हैं सारे
जब  संग पिया नहीं हो बेकार सब इशारे

चुपके से आके पीछे क्यों जिया को मोरे खींचे
तुझे चाँदनी पुकारे जा चला जा उसके पीछे
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 28 नवंबर 2018

ग़म हम भूल जाएँ

चलो फिर से बचपन को लौटा लाएँ
अपनी हथेली में किरणों को समेटें
फूलों पे बैठी तितली को पकड़ें
ताज़ी हवा में चलो घूम आएँ
नन्ही नन्हीं कोंपलों को छुएँ
कोई गीत मस्ती में गुनगुनाएँ
 मुँह में हवा भरके गुब्बारे फुलाएँ
नर्म नर्म घास पर पैदल चलें हम
थोड़ी बहुत सेहत हम भी बनाएँ
बच्चों के साथ मस्ती करें हम
उनके ही जैसे बच्चे बन जाएँ
कभी रूठें पल में कभी मान जाएँ
खेलें कभी हँसें और खिलखिलाएँ
आसमाँ के तारे अँगुली पे गिनें
कभी सारी गिनती ही भूल जाएँ
कागज़ की इक नाव बनाकर
थोड़े से पानी में हम उसे तैरायें
बच्चों की किलकारी में खुश होकर
सारे जहाँ के ग़म हम भूल जाएँ
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 27 नवंबर 2018

तेरी याद आ रही है

न जाओ  ऐसे रूठकर मुझसे ओ हमसफ़र
देखो ज़रा पलटकर तेरी याद आ रही है

न जाने किस कसूर पे तुमने मुझे सज़ा दी
कभी न बताया मिलके किसलिए जफ़ा की
कभी शिकवा  न किया है हर ग़म को सहा है
न जाने फिर क्यों दिल पे चोट दी जा रही है

हँसता हुआ था जो गुलशन तुमको पुकारता है
उजड़ा हुआ ये बागबां अब तुमको निहारता है
मुझको दिलासा दे दो थोड़ा सा ही मुस्कुरा दो
आ जाओ फिर पलटकर तेरी याद आ रही है
@मीना गुलियानी

सोमवार, 26 नवंबर 2018

अगाध की ओर

विधाता ने रचा
उसे प्रेम से
कल्पना से
कामना से
फ़ुरसत में
वह  मुझमें  है
उसकी हँसी
कुसुमित होती है
पलाश में
अमलतास में
हेमंत में
वसन्त में
बढ़ती जाती है
अगाध की ओर
@मीना गुलियानी 

रविवार, 25 नवंबर 2018

हाय रे हालात

उन्मुक्तता का छलावा
व्यर्थ का दिखावा
बातों में रुझान
आँखों में तूफ़ान
दिल है पशेमान
बोझिल हैं सांसें
रूकने को सांसें
दर्द की दास्तां
डूबती है जां
स्याह है रात
कैसे हैं जज़्बात
हाय रे हालात
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 24 नवंबर 2018

तुम्हारे आने से

सुरमई शाम हुई है तुम्हारे आने से
फ़िज़ा ने रंग बदला तुम्हारे आने से

काली घटाएँ जो छाई थीं चेहरे पे
 वो सब छंट गईं तुम्हारे आने से

सुकून छीन लिया था तेरी जुदाई ने
मिला है दिल को सुकूँ तुम्हारे आने से

कसक उठती थी जब धड़कता था दिल
मिली दिल को तसल्ली तुम्हारे आने से
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

फिर से तड़पा जाता है

न मालूम कितने लम्बे
होते हैं ये जुदाई के पल
दिल कहता है तू सम्भल
लेकिन ये पागल मन है
जो फिर भी जाता मचल
हर पल फिर से दिल में
होने लगती है हलचल
ये सुनकर कि तुम आओगे
दिल को कुछ करार आता है
लेकिन ये लम्बा इंतज़ार
फिर से तड़पा जाता है
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 22 नवंबर 2018

मैं मिटाना चाहता हूँ

मेरा कोई नहीं है तेरे सिवा
सुनले पुकार मत देर लगा
तुम सुनके सदा मेरी आ जाओ
आ जाओ   आ जाओ  आ जाओ

गुलशन के सारे फूल भी तेरा नाम ले रहे हैं
हवा के मस्त झोंके भी जुल्फों को छू रहे हैं
रेशम से भी मुलायम तेरा हाथ छू रहे हैं

मिल जाएँ सारी खुशियाँ मिले साथ जो तुम्हारा
तेरे सिवा न इक पल मुझे जीना भी गवारा
तू ही है मेरा साहिल तू ही मेरा किनारा

तेरे दिल में इक जहाँ मैं बनाना चाहता हूँ
तुझे आज तो अपना मैं बनानां चाहता हूँ
तेरे ग़म को हमेशा मैं मिटाना चाहता हूँ
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 21 नवंबर 2018

प्रेम का बन्धन

कैसा है ये प्रेम का बन्धन
जिसमे बंध गया आज मेरा मन
जो पहले मुक्त गगन में
पंछी बन विचरता फिरता था
अब एक पिंजरे में कैद हो गया
लेकिन ये कैद भी न मालूम
क्यों सुखद महसूस होती है
पंछी को पिंजरे से मोह हो गया
कितना विरोधाभास है
किन्तु ये सच है क्योंकि
जिस मंजिल की उसे तलाश थी
वो मिल गई है
और अपने पाँव में खुद
उसने जंजीरें बांध ली हैं
@मीना गुलियानी


मंगलवार, 20 नवंबर 2018

खुद के सताये बैठे हैं

तू आये न आये तेरी ख़ुशी
हम आस लगाए बैठे हैं

कभी परवाह नहीं की दुनिया की
हर हाल में हम तो खुश ही रहे
जैसा तुमने चाहा था हमसे
हम वैसे ही बनकर के रहे
अब और भला क्या मर्जी तेरी
हम खुद को लुटाये बैठे हैं

दिल हमने फना किया तुझ पर
दुनिया से न पूछा था हमने
दुनिया ने सितम लाखों ही किए
अफ़सोस मगर न किया हमने
पर तुम हमको इल्ज़ाम न दो
हम खुद के सताये बैठे हैं
@मीना गुलियानी


जब सारा जग सोता है

कभी इस दिल ने पुकारा जो तुम्हें
पलटकर इक बार तो लौट आना
ये माना कि मुश्किल तो बहुत है
पर आसां नहीं दिल को समझाना
 ख्वाहिशें इंसान को ज़िंदा रखती हैं
 आसां होता है ऐसे हाल में मर जाना
दिल धड़कता हे जब किसी के सीने में
रहता है उसका ऐतबार जिंदा दिल में
करता है पल पल किसी का इन्तज़ार
रहता है  सदा उसके लिए वो बेकरार
देता खुद दलीलें दिल को समझाता है
दिल है कमबख़्त कब समझ पाता है
हर आहट पे उसके आने का गुमा होता है
जागता रहता है जब सारा जग सोता है
@मीना गुलियानी 

रविवार, 18 नवंबर 2018

पाया उसका साथ

जिंदगी भर के लिए माँगा मैंने तेरा ही साथ
अब चाहे जान चली जाए न छूटेगा ये हाथ

उसने जब आँखों ही आँखों में इज़हार किया
दिल मेरा डूब गया इतना मुझे प्यार किया
गम न याद आये ऐसी थी वो हालात की रात

सुर्ख आँचल था वो उसका जो लहराता गया
मेरे जिस्म और रूह को भी महकाता गया
शोख नज़रों से थी बिजली गिराने की रात

नरम नाज़ुक वो फूलों की तरह कोमल वो हाथ
पंखुड़ी जैसे कंपकंपाते से धड़कते दिल का साथ
डूबते राही को मंजिल मिली पाया उसका साथ
@मीना गुलियानी


शनिवार, 17 नवंबर 2018

तुमको बताने आ गया

इस भरी दुनिया से खाली आ गया
आ गया दर पे सवाली आ गया

क्या पता था फूल में भी ख़ार है
ख़ुदपरस्ती का यहाँ बाज़ार है
प्यार में व्यापार धोखा खा गया

ज़र ज़मी जोरू जवानी का खुमार
बेख़बर था आपसे परवरदिगार
क्या करूँ इज़हार मैं शर्मा गया

जानकर अनजान मैं बनता रहा
छोड़कर नेकी बदी करता रहा
होश में आया तो मैं घबरा गया

जो भी चाहो दो सज़ा गुनहगार हूँ
है हकीकत इसलिए लाचार हूँ
हाले दिल तुमको बताने आ गया
@मीना गुलियानी 

बाग़ सारा मिल गया

मेरी उम्मीद से बढ़के था करम तेरा हुआ
तलब बूँद की थी और दरिया मिल गया

जब रहमत तेरी मिली मौज कश्ती बन गई
डूबने वाले को तिनके का सहारा मिल गया

झड़ गए वो सूखे पत्ते पेड़ सब्ज़ बन गया
जितना उसका लुटा उससे ज्यादा मिल गया

अब बाकी कहने को बचा क्या चैन मिल गया
फूल हाथ आया समझो बाग़ सारा मिल गया
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 15 नवंबर 2018

इक हसीन ज़हमत है

होश में तुम बातें मत किया करो
होश की बात करना तो वहशत है

सब यहाँ रोज़ मर मरके जीते हैं
फिर भी और जीने की हसरत है

सर पर सभी बोझ उठाके चलते  हैं
यह जिंदगी भी इक  हसीन ज़हमत है
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 14 नवंबर 2018

गूँज उठेगा संसार

जीवन की वीणा बाजे ना
पड़ गए झूठे तार

बिगड़े ठाठ से काम बने क्या
मेघ बजे न मल्हार

पंचम छेड़ो मद्धम बाजे
खरज बने गन्धार

इन तारों तरबों को फेंको
उत्तम तार से नया  होए सिंगार

इसमें जो सुर अब बोलेंगे तो
गूँज उठेगा संसार
@मीना गुलियानी


सोमवार, 12 नवंबर 2018

समझ लो उसे जीना आ गया

प्यार में जिसे जलना आ गया
समझ लो उसे जीना आ गया

उल्फत की यही रीत है यारो
कोई न किसी का मीत है यारो
प्रेम में ज़हर जिसे पीना आ गया
समझ लो उसे जीना आ गया

कब सुनते हैं इश्क में जलने वाले
कब सुनते दिल के नाले दुनिया वाले
काँटों से गुज़रके जिसे जीना आ गया
समझ लो उसे जीना आ गया

इश्क  में करते खुद को फ़ना दिल वाले
ये दिल वाले भी होते हैं कुछ मतवाले
 जिगर का लहू जिसे पीना आ गया
समझ लो उसे जीना आ गया
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 8 नवंबर 2018

मुझे ढूँढ ही लेगा

मेरा दिल आज कहीं पर खो गया है
देखना तुम्हारे आस पास तो नहीं
मिल जाए तो मुझे संदेशा दे देना
हवा के झोंके आके मुझे बता देंगे
पवन की सुरभि भी मुझे बता देगी
नभ के तारे भी उसे ढूँढ़ ही लेंगे
जुगनु अपनी चमक से राह बतायेंगे
सुबह की ओस की बूँदें उसे नहला देंगी
गुलशन के फूल पत्ते उसे सजा देंगे
तुम तनिक भी उसकी चिंता न करना
वो खुद भी अपना आशियाना जानता है
कहीं न कहीं से वो मुझे ढूँढ ही लेगा
@मीना गुलियानी

मंगलवार, 6 नवंबर 2018

इस दाव में तेरी जीत नहीं

भक्ति की यह तो रीत नहीं
मन और कहीं तन और कहीं

मोहमाया ने पर्दा डाला
लहराती आँखों में माया
तू हाथ में माला ले बैठा
मन में भगवान की प्रीत नहीं

मनवा विषयों में झूम रहा
मनवा पापों में घूम रहा
मन को तू कैसे समझाए
इस दाव में तेरी जीत नहीं
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 5 नवंबर 2018

न जाने तुम कब आओगे

सहर अब शाम बन चुकी
न जाने तुम कब आओगे
फ़िज़ा भी रंग बदल चुकी
न जाने तुम कब आओगे

सितारे न जाने कहाँ खो गए
नज़ारे सब खामोश क्यों हो गए
हवा भी अब तो बदल चुकी
न जाने तुम कब आओगे

शमा हर महफ़िल में जल गई
ये रंगत पल भर में बदल गई
धुएँ में शब ये ढल चुकी
न जाने तुम कब आओगे
@मीना गुलियानी 

रविवार, 4 नवंबर 2018

कैसे विजय को पाना

कठिन हैं राहें और रास्ता अनजाना
ऐ मुसाफिर तू कदम धीरे से बढ़ाना

रखना हमेशा हौंसला तू लांघ लेगा पर्वत
ऊँची चोटी देखके बिल्कुल नहीं घबराना

हर राह आसान हो जाती है चाहे हो मुश्किल
कर विश्वास तू खुद पे नहीं पड़ेगा पछताना

हर फैंसले से पहले बाज़ू भी आज़मा लेना
ऐसा न हो राह में दुश्मन बने ये ज़माना

सह सह के मुश्किलों को संवरेगी तेरी जिंदगी
लेकिन तू हर कदम को  हँसके आगे बढ़ाना

हों नेक जिनके इरादे वो फिर क्यों घबरायें
हर मुश्किल से सीखें कैसे विजय को पाना
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 3 नवंबर 2018

मेरे जख्मों पे तुम मरहम

ज़माना दिए जा रहा ग़म पे ग़म
संभालो ऐ माँ न निकल जाए दम

सताया गया हूँ मैं संसार से
उठा लो मुझे ज़रा प्यार से
बड़ा होगा मुझपे तुम्हारा करम

मेरी नाव है डूबती जा रही
किनारा कहीं भी नहीं पा रही
खत्म होने को है मेरा ये जन्म

मुसीबत में हूँ माँ मैं लाचार हूँ
तुम्हारी दया का तलबगार हूँ
उठाले मुझे गोद में कम से कम

मेरा दिल मैया आज घायल हुआ
नहीं रास आई कोई भी दवा
लगाओ मेरे जख्मों पे तुम मरहम
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

अब तो दर्श दिखा जा रे

सांझ भई घर आजा रे पिया सांझ भई घर आजा रे
तुम्हरे दर्श को तरसे नैना अब तो दर्श दिखा जा रे

तुम बिन कल नहीं पावत मोरा जियरा
तड़पत निशदिन समझत नहीं जियरा
अब तो इसे समझा जा रे

कैसे भेजूँ तुमको मैं पाती
आँसू कारण लिख न पाती
दिल को धीर बँधा जा रे

जल्दी से आओ प्रीतम प्यारे
नैनो  के दीपक बाट निहारे
अब तो दर्श दिखा जा रे
@मीना गुलियानी 

पहिया चलता रहता है

 जिंदगी दो पल की है
उसे हँसकर जीना सीखो
वक्त के साथ चलना सीखो
वो खुद ही बदल जाएगा
यूँ घुट घुट कर मत जियो
खुली हवा में हँसकर जियो
जो बातें तेरे बस में नहीं
उनको ईश्वर पर छोड़ दो
वो ही सब उलझनें मिटायेगा
ख़ुशी और ग़म दो पहलू हैं
इनका समन्वय होना जरूरी है
दोनों साथ साथ नहीं आते
सुख है तो दुःख भी होगा
वक्त पल पल बदलता है
इसका पहिया चलता रहता है
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 31 अक्टूबर 2018

गज़ब दिल पे ढाने लगी है

चाँद सरगोशियाँ कर रहा है
जिंदगी मुस्कुराने लगी है
उसके नाज़ुक लबों पे फिर से
गुनगुनाहट सी आने लगी है

कैसा आलम नशीला है छाया
बन गया अपना जो था पराया
फिर से सजने लगे आज गुंचे
हर कली खिलखिलाने लगी है

उनके हाथों में मेहँदी लगी है
सुर्ख जोड़े में दुल्हन सजी है
पायल की खनक उनकी देखो
बोल मीठे सुनाने लगी है

उफ़ ये शर्माता नाज़ुक सा चेहरा
उसपे लहराती जुल्फ़ों का पहरा
उठती गिरती पलकों की चिलमन
क्या गज़ब दिल पे ढाने लगी है
@मीना गुलियानी

मंगलवार, 30 अक्टूबर 2018

रणचण्डी बन सामना करेगी

नारी तू नहीं है निर्बल
तू तो सदा से सबल
देवों की तू है जननी
तुझसे मिले सबको बल
तू है वरदायिनी आदिशक्ति
अन्नपूर्णा और सती सावित्री
तू ही विश्व की कर्त्ता भर्ता
तू पुरुष की अनुगामिनी सहभागिनी
तू है  पुरुष का संबल पर
वो तुझसे हमेशा करता छल
युगों युगों से छलता आया है
हर युग में तूने पीड़ा पाई है
तू  मोक्षदायिनी मुस्काई है
कभी द्रौपदी कभी सीता के रूप में
तूने पीड़ा  को झेला है पर तूने
कभी हार न मानी विजय पाई है
पुरुषों की प्रवृति कब सुधरेगी
हमेशा नारी पर कुदृष्टि डाली है
कभी चीरहरण अपहरण बलात्कार
सब अत्याचार व्यभिचार नारी पर हुए
पर अब और नहीं सहेगी अब वो
दुर्गा का रूप धरेगी हर अत्याचार का
दुराचार का रणचण्डी बन सामना करेगी
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 29 अक्टूबर 2018

अब सुधर गए

दिल की गहराई में तुम उतर गए
सारे गिले शिकवे जाने किधर गए

तुम इस कदर समाये हो दिल में मेरे
जिस तरह कि नभ में तारे बिखर गए

मेरी हसरतें भी पूछती हैं उनसे क्या कहूँ
मेरे तो सब अरमान मुझको बिसर गए

तन्हाईयाँ पूछती नहीं तेरा पता कभी
हालात जिंदगी के जैसे अब सुधर गए
@मीना गुलियानी 

रविवार, 28 अक्टूबर 2018

गजब हो जाएगा

तुम प्यार से इक बार मुस्कुरा दो
गजब हो जाएगा

तेरी यादों में खोया मैं रहता हूँ
अपनी मस्ती में सोया रहता हूँ
तुम ख़्वाब में आके मुझे जगा दो
गजब हो जाएगा

फ़िक्र न दुनिया की न पर्दादारी है
तेरी चौखट पर  ही अर्ज गुज़ारी है
मेरे सोए हुए नसीब को जगा दो
गजब हो जाएगा
@मीना गुलियानी

शनिवार, 27 अक्टूबर 2018

प्रात: से हो रही थी

नव प्रभात वेला में उषा ने अँगड़ाई ली
अलसाई हुई मुंदी अपनी आँखें खोली
फिर उठकर वो जल भरने पनघट गई
पहले  नदी में स्नान किया सद्य स्नाता
धवल वस्त्रों में ही नदी से बाहर निकली
खुले घुंघराले केश मुक्ताकण लुटा रहे थे
सूरज रश्मियों को न्यौछावर करने लगा
वातावरण पक्षियों के कलरव से गूँज उठा
फूलों की सुगन्ध मन प्रफुल्लित कर रही थी
उषा ने सर पर  रत्नजड़ित मुकुट पहना
बालों में गजरा लगाया कर्णफूल सजाए
कुंकुम लगाया स्वर्ण कंगन मुक्ताहार पहना
धरा पर धन धान्य की वर्षा हाथों से की
धरा प्रमुदित होकर खुशियाँ समेटने लगी
मंदिरों में घंटा घड़ियाल शंखनाद होने लगे
मंगला आरती के लिए जनता उमड़ पड़ी
देवगण भी गगन से पुष्पवर्षा करने लगे
भक्तगण भावविभोर होकर स्तुति करने लगे
ढोलक नगाड़े की धुन पर भक्त  झूमने लगे
प्रभु के दर्शनों की शोभा अनिवर्णीय थी
भक्तगण  स्वयं को धन्य मानने लगे
ईशकृपादृष्टि उन पर प्रात: से हो रही थी
@मीना गुलियानी


शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2018

ये वादा कर लो

दिल न तोड़ोगे कभी आज ये वादा कर लो
यूँ ही तुम साथ निभाने का वादा कर लो

सपने देखे जो अधूरे से अधूरे हैं अभी
दिल की बात मुलाक़ात अधूरी है अभी
चंद लम्हों के लिए साथ का वादा कर लो

फिर कभी मिलना हो पाए मुमकिन ही नहीं
दिल का अफसाना अधूरा ही न रह जाए कहीं
कम न होंगे कभी जज़्बात ये वादा कर लो

फिर ये एहसास दिलाना भी जरूरी तो नहीं
तुमको हम पास बुला पाएं जरूरी तो नहीं
पूरे होंगे सभी अरमान ये वादा कर लो
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018

झाँके प्रेम से भोले ये नयन

जबसे मिला है प्रेम तुम्हारा 
दिल मदहोश फिरे बेचारा 
मन पंछी को मिला सहारा 
समझे ये नैनो की भाषा 
तन मन जोगी भया उदासा 
खिला फूल सा जीवन उपवन 
सुरभित हुआ प्रफुल्लित मन 
भावों का हुआ अवगुण्ठन 
अश्रु रहित हैं आज नयन 
प्यासी प्यासी ये चितवन 
झाँके प्रेम से भोले ये नयन 
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 24 अक्टूबर 2018

आँगन ये जगमगा दिया

उठाके सर को नज़र मिलाके जीना तुमने सिखा दिया
लबों पे मेरी हँसी को फिर से तुमने आके जगा दिया

न होश खोये न पल गंवाए
कहीं भी कुछ भी न भूल पाए
ख्वाबों में आके मुझे जगाके
मुस्कुराना फिर सिखा दिया

हैं पल सुहाने तुम्हें जो पाया
दिल में हमने दिया जलाया
बुझा न पाएगी कोई आँधी
शमा को ऐसे जला दिया

पकड़ा जो तेरी वफ़ा का दामन
छुड़ाए कोई है किसमें दम
खुशियों भरी है दिवाली आई
आँगन ये जगमगा दिया
@मीना गुलियानी

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

वजूद भी उसका वो ले गया

सफर के बीच में छोड़ा उसने
न जाने वो किधर गया
तोड़ गया वो दिल को मेरे
ग़मों के हवाले कर गया
नशा प्यार का सर पे चढ़ा था
उसका खुमार भी उतर गया
दिन ढलते ही सांझ हुई जब
सैलाब सा वो ठहर गया
सुंदर सा जो बनाया घरोंदा
तिनका तिनका बिखर गया
मुझको यकीं मेरे ख़्वाबों पर था
वजूद भी उसका वो ले गया
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 22 अक्टूबर 2018

ऐतबार ज़रूरी है

जीने के लिए वजह का होना ज़रूरी है
दिल में थोड़ी जगह होना ज़रूरी है

चलो कहीं दूर चलें पर तेरा साथ ज़रूरी है
रात ढल चुकी अँधेरे में रोशनी ज़रूरी है

चलेंगे तो फांसले मिटेंगे घाव भरने ज़रूरी हैं
पहले दीवाने थे अब अजनबी होना ज़रूरी है

 दूरी के एहसास के लिए बिछुड़ना ज़रूरी है
प्यार होने पर एक दूसरे पे ऐतबार ज़रूरी है
@मीना गुलियानी 

रविवार, 21 अक्टूबर 2018

तू मेरा नसीब भी है

तू मेरा नसीब है तू मेरे करीब है
तू दिल जान मेरी तू मेरा हबीब है

तू मेरे दिल में बसा
मेरी रूह तक पहुँचा
कैसे करूँ दूर तुझे -तू मेरा रकीब भी है

नेकी बदी से बँधा
अजब रिश्ता है तू
क्या कहूँ कैसे कहूँ -तू मेरे करीब भी है

तुझे हर पल चाहा
तुझे हर पल पूजा
दुनिया के ताने शी -तू मेरा नसीब भी है
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 20 अक्टूबर 2018

दर्द से मेरा बेहाल है

तू नज़र उठाके देख तो ले तेरे सामने मेरा हाल है
तुझे कैसे मैं जुदा  करूँ मेरी जिंदगी का सवाल है

कैसे भूल जाऊँ वो पल हँसी जब तुम मिले थे राह में
वो नज़ारे अब हैं बुझे बुझे मुझे इसका ही तो मलाल है

मेरी हसरतें भी सिमट गईं जब तूने नज़रें उधर करीं
मेरी सांसें भी हैं थमी थमी तेरी नज़रों में भी सवाल है

हुए होश मेरे गम यहाँ तुझे अपना समझे थे हम यहाँ
तेरी बेरुखी ने सितम किए  दिल दर्द से मेरा बेहाल है
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2018

प्यार का एहसास तुम हो

मेरी तन्हाई और ख़्वाबों में तुम हो
मेरे होंठों की हँसी , बातों में तुम हो

उनींदी पलकें मेरी और ख़्वाबों में तुम हो
महकता तन मेरा उसकी खुशबु तुम हो

तुम्हीं मेरे सवालों में जवाबों में तुम हो
मेरी धड़कन में बसी हर सांस में तुम हो

मेरा प्यार है तरसता रेगिस्तान बरसात तुम हो
मैं हूँ प्यार की अधूरी कहानी मेरा प्यार तुम हो

मेरे दिल के कोने  में बसी इक याद तुम हो
मेरी रूह में छिपा प्यार का एहसास तुम हो
@मीना गुलियानी


गुरुवार, 18 अक्टूबर 2018

ज़रा आहिस्ता चल

तेरे आने की खबर से मची हलचल
ज़रा आहिस्ता चल

तू है मसरूफ़ वहाँ मैं हूँ बेताब यहाँ
तेरे पास आने के न दिखें कोई निशाँ
कैसे टुकड़ों में जिए जाएँ हम
ज़रा आहिस्ता चल

दिल मेरे बस में नहीं तू मेरे पास नहीं
कैसे कहदूँ तुमको कि मैं उदास नहीं
तू जो आ जाए तो दुःख होगा कम
ज़रा आहिस्ता चल

जिंदगी है सूनी मेरी है अधूरी तेरे बिन
तू है खुशियों भरा हो जाए सुहाना दिन
मिले जो तू सब पा जाएँ हम
ज़रा आहिस्ता चल
@मीना गुलियानी


बुधवार, 17 अक्टूबर 2018

माता की भेंट -9 -सबको पैसे से काम है

तुझे छोड़ कहाँ जाऊँ माँ मैंने ढूँढा ये सारा जहान है 
अब तो ये सारा जीवन मैंने लिख दिया तेरे नाम है 

तेरे बिना मैं चैन न पाऊँ  रोते रोते वक्त कटे 
हर पल तेरी याद में गुज़रे दिन बीते यूँ रात कटे 
यूँ ही जीवन बिताऊँ सुबो शाम है तेरे बिन कहाँ आराम है 

जाने कौन सी गलती पर तू रूठ गई है अब मुझसे 
हूँ नादान तेरा बच्चा माँ अब तो मान जा माँ मुझसे 
तेरे चरणों में मेरा प्रणाम है यही विनती करूँ आठों याम है 

माँ बेटे का पावन नाता हर नाते से ऊँचा है 
तुझको अपना माना मैंने हर नाता अब झूठा है 
दुनिया स्वार्थ का नाम है सबको पैसे से काम है 
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 16 अक्टूबर 2018

माता की भेंट -8 -रास्ता तू दिखा देना

मुझे आस तेरी मईया न निराश मुझे करना 
सब कष्ट हरो मेरे आँचल की छाँव करना 

मेरे मन के द्वारे में आ कर लो बसेरा माँ 
तेरी जोत जले मन में हो दूर अँधेरा माँ 
मैं आया शरण तेरी मुझे दर्श दिखा देना 

मेरी आस का बंधन कहीं टूट न जाए 
क्या सांस का भरोसा पल आये कि न आए 
मेरे नैन प्यासे हैं मेरी प्यास बुझा देना 

सब देख लिया जग में माँ कोई नहीं अपना 
सब झूठे नाते हैं जग सारा इक सपना 
मैं भटका राही हूँ रास्ता तू दिखा देना 
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 15 अक्टूबर 2018

माता की भेंट -7 -दाती का भरा भंडार है

मईया का खुला दरबार है
द्वारे जो आये बेड़ा पार है 
करती मईया उद्धार है 
दाती का भरा भंडार है 

मांगी मुरादें सब पाते हैं 
झोली को भर ले जाते हैं 
महिमा उसकी अपार है 
दाती का भरा भंडार है

 न लौटा दर से कोई खाली है 
मईया मेरी मेहरों वाली है 
करती  सभी से वो प्यार है 
दाती का भरा भंडार है 

मोहमाया जाल से छुड़ायेगी 
बिगड़ी वो सबकी बनायेगी 
चरणों में गंगा की धार है 
दाती का भरा भंडार है 
@मीना गुलियानी 



रविवार, 14 अक्टूबर 2018

माता की भेंट -6 -जो उसके रंग में ढलते हैं

तेरे द्वार पे आने वालों के दुखड़े माँ पल में टलते हैं 
लाखों दुखियारे लोगों के इक पल में भाग्य बदलते हैं 

ले इच्छा जो भी आता है खाली न दर से जाता है 
हर एक सवाली का पल में अरमां पूरा हो जाता है 
बिगड़ी तकदीरें बनती हैं खुशियों के चमन खिलते हैं 

लौटा न दर से सवाली है ये माता शेरों वाली है 
दे मुक्ति का वरदान यही हर विपदा हरने वाली है 
ये सूरज चंदा और तारे उसके कहने से चलते हैं 

हर जीव में उसकी ज्योति है हर सीप बनाए मोती है 
खुशियों से झोली भर जाए कृपा जो उसकी होती है 
माँ करती उसकी रखवाली जो उसके रंग में ढलते हैं 
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 13 अक्टूबर 2018

माता की भेंट -5 -राह निहारें बड़ी देर से

आ जा माँ मेरे नैन दीवाने तेरी ,
राह निहारें बड़ी देर से 

आजा मेरी मईया तुझे है पुकारा 
तेरे बिन जहाँ में है कौन हमारा 
देख ले आकर हाल तू मेरा 
राह निहारें बड़ी देर से 

माँ गम के भंवर में डूबी मेरी नैया 
माँ पार लगाओ तू ही तो खिवैया 
देर न करना मेरी मईया 
राह निहारें बड़ी देर से 

तूने हर दुखी को माँ धीर बंधाया 
बता तूने माता मुझे क्यों बिसराया 
मैं हूँ तेरे दर का भिखारी 
राह निहारें बड़ी देर से 

तुझे ही तो मईया अपना है माना 
हूँ सारे जहाँ से माता मैं बेगाना 
मैं तो मईया शरण तिहारी 
राह निहारें बड़ी देर से 
@मीना गुलियानी 



शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2018

माता की भेंट -4 -चरणकमल से लौ लागी

अखियाँ दर्शन अनुरागी ,चरणकमल से लौ लागी

अब तो दर्श दिखा जाना 
प्यास को आके मिटा जाना 
मन मेरा बना बैरागी 

मईया जी अब न देर करो 
मन की उदासी दूर करो 
प्रीत अगन मन में जागी 

जोड़ा तुम्हरे संग नाता 
बेटी मैं हूँ तुम माता 
माँ ने क्यों ममता त्यागी 
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 11 अक्टूबर 2018

माता की भेंट -3 - तू मुझे अपना

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ओ आजा मेरी मईया ओ प्यारी प्यारी मईया
मोरे अंगनवा तू जल्दी से आ

रात दिन मईया मैं राह देखूँ तेरी
काहे तू न आये लगाए मईया देरी
जल्दी से आजा न और तरसा

नैना मेरे मईया जी दर्शन मांगे
तुझसे ऐ मईया न कुछ और मांगे
आके तू अखियों की प्यास मिटा

दुनिया ने मईया है मुझको सताया
सब कुछ छोड़ मईया तेरे दर आया
सुनले तू विनती माँ लाज बचा

कब तक तेरी माँ राह निहारुँ
तुझे छोड़ मईया मैं किसको पुकारूँ
छोड़ा ज़माना तू मुझे अपना
@मीना गुलियानी

बुधवार, 10 अक्टूबर 2018

माता की भेंट -2 --लख चौरासी के हैं फेरे


आजा माँ ----- ---जगदम्बे
मैं तो कबसे खड़ी तेरे द्वार
मईया आके सुनले पुकार 

मैं तो मईया तेरी दासी , अखियाँ दर्शन की हैं प्यासी
दूर करो मेरे मन की  उदासी

छाए हैं चारों ओर अँधेरे , दर्शन देकर कर दो सवेरे
मिट जाएँ माँ सब ग़म मेरे

तेरा दर्शन जब मैं पाऊँ , तन मन अपना भेंट चढ़ाऊँ
तेरी महिमा निशदिन गाऊं

तुम बिन मेरा कोई न दूजा , करूँ मैं निशदिन तेरी पूजा
तेरे सिवा  न भाए दूजा

मईया जी हम बालक तेरे ,माया जाल के काटो घेरे
लख चौरासी के हैं फेरे
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 9 अक्टूबर 2018

माता की भेंट ---अज्ञान को मिटाओ

माता की भेंट


हे अम्बिके भवानी दर्शन मुझे दिखाओ
अन्धकार ने है घेरा ज्योति मुझे दिखाओ

मईया तेरे दर का मुझको तो इक सहारा
नैया भंवर में डोले सूझे नहीं किनारा
मंझधार से निकालो नैया मेरी बचाओ

लाखों को तूने तारा भव पार है उतारा
बतलाओ मेरी माता मुझको क्यों बिसारा 
बच्चा तेरा हूँ मईया मुझको गले लगाओ

सूनी हैं मेरी राहें आंसू भरी निगाहें
बोझिल हैं मेरी सांसे दुःख कैसे हम सुनाएं
गम आज सारे मेरे मईया तुम्हीं मिटाओ

तेरा नाम सुनके आया जग का हूँ माँ सताया
मुझको गले लगाओ तेरी शरण हूँ आया
रास्ते विकट हैं मईया अज्ञान को मिटाओ
@मीना गुलियानी 




जैसा कि आप सभी को विदित है कि कल से नवरात्र प्रारम्भ होने जा रहे हैं इसलिए हर वर्ष की भांति

कल से माता की भेंट प्रस्तुत की जायेगी  आप सभी को अग्रिम शुभकामनाएँ




@मीना गुलियानी 

सोमवार, 8 अक्टूबर 2018

अपना सर झुकाए बैठा हूँ

इक बोझ सा सीने में छुपाए बैठा हूँ
सुलगते आग के शोले दबाए बैठा हूँ

गुज़रते जा रहे कितने  कारवां जिंदगी के
चंद लम्हों के लिए खुद को बचाए बैठा हूँ

दिल की हसरतें मुँह अपना खोल देती हैं
मैं उसे भी अपनी नज़रें चुराए बैठा हूँ

रूठने वाले तेरी सलामती की दुआ करता हूँ
उसके सज़दे में अपना सर झुकाए बैठा हूँ
@मीना गुलियानी

रविवार, 7 अक्टूबर 2018

रोशन शमा से हम ही करेंगे

हम तुमसे कभी कोई भी शिकवा न करेंगे
जब तक भी जियेंगे तुझे रुसवा न करेंगे

वादा यही है हमारा हो बुलंद तेरा सितारा
हर रोज़ तेरे लिए दुआ हम रब से करेंगे

तू चाहे अर्श पे रहे हम रह लेंगे फर्श पर
तुझसे कभी इसकी शिकायत न करेंगे

न टूटे हौंसला तेरा कभी कैसा भी हो सफर
तेरी राहों को रोशन शमा से हम ही करेंगे
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 6 अक्टूबर 2018

लुटे न कभी कारवां किसी का

ओ ऊपर वाले सुनले अफसाना बेकसी का

तेरे सामने खड़ा हूँ हाथों को मैं फैलाए
भरदे तू झोली सबकी जो आस हैं लगाए
खाली न तू लौटाना दामन कभी किसी का

अफसाना सुन मेरा तू ऐ दो जहाँ के वाली
गिरतों को दे सहारा लौटाना न दर से खाली
मिले सबको ही सहारा तेरी ही बंदगी का

मतलब की सारी दुनिया मतलब के सारे नाते
दाता तू रहम करना जो भी दर पे तेरे आते
मंजिल पे ही लुटे न कभी कारवां किसी का
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2018

बांधा तेरी कलाई पे डोरा

खन खन खनके कंगना मोरा
जियरा मोरा बना चकोरा

रोज़ दुआएँ रब से मांगू
रहे सलामत साजन मोरा

सुर्ख लिबास जो पहना मैंने
उसपे दुपट्टा काला ओढ़ा

नज़र लगे न तुझको किसी की
बांधा तेरी कलाई पे डोरा
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 4 अक्टूबर 2018

विश्वास से इसे पनपाया है

मैंने अपनी वफाओं का दीपक
गमों की आँधियों में जलाया है
अपने दामन में उसे छुपाया है
तेज़ हवा के झोकों से बचाया है
अपनी तमन्नाओं से सजाया है
सुरभित फूलों से महकाया है
भावनाओं का घरोंदा बनाया है
तिनके जोड़के आशियाँ बनाया है
तितलियों के रंगों से रंगाया है
जुगनु की रोशनी से चमकाया है
चंदा की रोशनी से जगमगाया है
सूरज की किरणों से नहलाया है
प्रेम से इसे मैंने सदा सहलाया है
अटूट विश्वास से इसे पनपाया है
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 3 अक्टूबर 2018

चलूँ मैं पिया की नगरिया रे

आज कंगनवा मोरा खनके चलूँ मैं पिया की नगरिया रे
घुंघरू पायलिया के छनके चलूँ मैं पिया की नगरिया रे

आज सखी री कुछ न कहूँगी उनसे जियरा की बात
आँखों से ही वो सब पढ़ लेंगे मोरे मनवा की बात
दिल मेरा अभी से धड़के चलूँ मैं पिया की नगरिया रे

धरती पे सीधे पग न पड़े हैं झूमें सारा गात
ख़ुशी से मैं फूली न समाऊं दर्शन होंगे आज
देखूँगी उनको जी भरके चलूँ मैं पिया की नगरिया रे

ओ रे चंदा तू भी सुनले छुप जाना कहीं आज
तेरे सामने दिल मोरा डोले आती मोहे  लाज
सर से चुनरिया भी सरके चलूँ मैं पिया की नगरिया रे
@मीना गुलियानी


मंगलवार, 2 अक्टूबर 2018

यूँ मुस्कुरा के चलिए

आँखों को हाथों से यूँ ही न मलिए
पग न फिसल जाए ज़रा संभलिए

है रास्ता बड़ा टेढ़ा मेढ़ा यहाँ का
सुझाई न देता है पथ में धुआँ सा
कदम ऐसे बहके न लहरा के चलिए

बहुत ठण्डी  ठण्डी  हवाएँ यहाँ हैं
फ़िज़ा का भी आलम मस्त यहाँ है
खा जाएँ धोखा न इतरा के चलिए

अभी तुमने मौसम को देखा कहाँ है
कभी आये पतझड़ कभी खुशनुमां है
बदल जाए रुत यूँ मुस्कुरा के चलिए
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 1 अक्टूबर 2018

वो फिर से याद आने लगा है

तेरे आने का मुझे गुमां सा हुआ है
दिल का ये दिया न बुझने दिया है

नशा तेरे प्यार का आँखों में चढ़ा जो
सुरूर उसका हर पल बढ़ता रहा है

सुना है रात भर बरसा है  ये बादल
ये दिल फिर भी प्यासा ही रहा है

ये दिन अब तो ढलने लगा है
वो फिर से याद आने लगा है
@मीना गुलियानी 

रविवार, 30 सितंबर 2018

कैसा वहशीपना ये आज है

ज़रा सामने तो आओ युवको समाज बर्बाद हुआ आज है
आँख खोलके ज़रा देख लो तेरे हाथों में भारत की लाज है

पहले तो लड़की बिकती थी पर आज पुरुष भी बिकते हैं
गरीब की लड़की पढ़ी लिखी हो किन्तु धनिक पर मरते हैं
धिक्कार जवानों तुम्हें आज है क्या मुर्दा तुम्हारी आवाज़ है

देखो ज़रा तुम देश में कैसा  दहेज का ये व्यवहार चला
घर घर में कोहराम मचा है किसी के घर चूल्हा न जला
कई जीवन हुए बर्बाद हैं घर टूटने की कगार पे आज हैं

वक्त है नाज़ुक सम्भल भी जाओ थामो इस रफ्तार को
दहेज प्रथा का कलंक मिटाओ बदलो ऐसे समाज को
इन बेटियों की लुट रही लाज है कैसा वहशीपना ये आज है
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 29 सितंबर 2018

भारत को उच्च शिखर पहुँचाया

आज फिर धूप आँगन में खिल उठी
मन के आकाश पर छितरा गई
कैनवास पर अक्स उभरने लगे
तूलिका रंग से भरकर चलने लगी
हरे रंग से धरा की हरीतिमा झलकी
सुनहरे रंग से धूप की किरणें चमकी
हथेली मेहँदी रचाकर माथे बिंदिया लगा
फूलों के कर्णफूल पहन धरा दुल्हन सी दमकी
पैरों में महावर  रचाकर रुनझुन पायल खनकी
गले में पहनी फूलमाला ओढ़ा पत्तों का दुशाला
काजल बदरी से चुरा धरा ने नैनो में लगाया
मांग में सिन्दूरी फूल चले झूमती उड़ाके धूल
स्वप्न हुए उसके सिन्दूरी हर आशा करने को पूरी
धरती ने खलिहान सजाया धन धान्य उपजाया
नए नए आयामों से भारत को उच्च शिखर पहुँचाया
@मीना गुलियानी

शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

रुख़सत अब दे दीजिए जनाब

ये भोली चितवन और उस पर हिज़ाब
दिल  बोला वल्लाह क्या बात है जनाब

आये हो तुम दूर से बैठो ज़रा
कुछ तुमसे बातें करलें ज़रा
अच्छी शायरी कर लेते जनाब

जाने की जल्दी क्यों तुमको पड़ी
इतनी जल्दबाज़ी भी अच्छी नहीं
थोड़ा इत्मिनान कीजिए जनाब

 आयेंगे फिर भी सुनिए  हुज़ूर
ख़िदमत का मौका देंगे ज़रूर
रुख़सत अब दे दीजिए जनाब
@मीना गुलियानी



गुरुवार, 27 सितंबर 2018

तू शान बन के जी

ओ जीने वाले तू सिर्फ इक इंसान बनके जी
धरती का बोझ बनकर न हैवान बनके जी

हो पेट जिनका खाली तू उनका पेट भर
ओ मौज करने वाले कभी उनकी ले खबर
गिरतों का बन सहारा तू इंसान बनके जी

नैया भंवर में डोले किसी की  तू पार लगा दे
हो आफत में जां किसी की तू उसको बचाले
रोते  हुए चेहरे की  तू मुस्कान बनके जी

बन अन्धों की लाठी निराशों की आस बन
भटके हुए लोगों के लिए तू प्रकाश बन
इस पावन धरा की तू शान बन के जी
@मीना गुलियानी

इतनी न सज़ा दीजिए

अपने दिल में जगह दीजिए करम इतना अता कीजिए

दुनिया ने लाखो सितम ढाये हैं हम पर
थोड़ा मरहम लगा दीजिए

कभी तुझसे शिकवा या शिकायत न करेंगे
आते जाते रहा कीजिए

दिल्लगी की है हमने माना थोड़ी सी मगर
इतनी न सज़ा दीजिए
@मीना गुलियानी

मंगलवार, 25 सितंबर 2018

मानुष जन्म अनमोल रे

रे मन संभल संभल पग धरना
आँखें अपनी खोल रे
ये धरती है उबड़ खाबड़ कहीं
कदम न जाए डोल रे

काम क्रोध मद लोभ के रोड़े
रास्ता तेरा रोकेंगे
ईर्ष्या द्वेष महीधर बैठे
तुझको न बढ़ने देंगे
न डरना तू इनसे मानव
तू  अपनी राह टटोल रे

इनके प्रलोभन में मत आना
दूर से ही नाता निभाना
अपने साक्षीभाव में रहकर
दुष्कर्मों को दूर भगाना
समझ लेना जग नश्वर है
मानुष जन्म अनमोल रे
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 24 सितंबर 2018

अपने जीवन की वीणा

ओ  जीने  वाले हँसते हँसते जीना

आँसू तेरे छलक न जाएँ
छलक कर ढलक न जाएँ
आँखों में ही इनको पीना

सूरज डूबे कभी न तेरा
जब तू जागे तभी सवेरा
तेरा रंग बदले कभी ना

बिजली तुझको राह दिखाए
सुख के स्वर में बजा बाँवरे
अपने  जीवन की वीणा
@मीना गुलियानी 

रविवार, 23 सितंबर 2018

कल फिर आये ना

तुमको कसम है मेरी दूर तुम जाओ ना
आओ बैठो पास मेरे ऐसे तरसाओ ना

कितने बरस के बाद दिन ऐसा आया
सपनों में तुमसे मिले फिर बने साया
आज की घड़ी को तुम यूँ ही गवाँओ ना

सोचा था दिल में सनम से होंगीं बातें
पता न था कितनी छोटी हैं मुलाकातें
बीता जाए ये लम्हा कल फिर आये ना
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 22 सितंबर 2018

रास्ता खुल जाएगा

इच्छाएँ हमेशा बलवती रहती हैं
ये कभी भी मरती ही नहीं हैं
 कभी राहें भी धूमिल होती हैं
जिससे मन हताश हो जाता है
लेकिन मन के पाँव नहीं रुकते
मन मृगतृष्णा में ही डोलता है
जीवन में संतुष्टि आवश्यक है
खुशियों का स्त्रोत हमारे भीतर है
अपने जीवन को स्वयं संवार लो
सांसारिक कामनाओं का अंत करो
जीवन को कभी बोझ न समझो
अपने विवेक को जागृत कर लो
फिर आगे का रास्ता खुल जाएगा
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

लौटके आएँ

विरही नैना नीर बहाए
कोई इन्हें आके समझाये
हर पल पलकों में रहते हैं
अश्रु बन जो छलक न पाए

गम नैनो में छिपा रहता
व्याकुल मन की कहते व्यथा
बदरी जब भी घिरके आये
उमड़ घुमड़ के जल बरसाए

सावन की रिमझिम का मौसम
बूँदों की टिपटिप सुनते हरदम
प्यासा सावन बीत न जाए
कहदो पिया  से लौटके आएँ
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 20 सितंबर 2018

व्याकुल जियरा है तुम बिन

उलझ गए जबसे तोसे नैन
मन ने तनिक न पायो चैन
श्यामल रंग बदरी से चुराया
साँवरा तू मेरे मन में समाया
हँस हँस करे तू मोसे मीठे बैन
तेरी बन्सी मोरा जियरा चुराए
दिल मेरा बिन मोल बिका जाए
इसके मीठे सुर मन को लुभायें
आऊँ जब पनघट पे संग सखियाँ
बावरी बनायें कान्हा तोरी बतियाँ
सखियाँ करत मोसे हँसी ठिठोली
कान्हा तूने मति हर लीन्ही मोरी
चकोरी ज्यों तड़पे चंदा के बिन
ऐसे व्याकुल जियरा है तुम बिन
@मीना गुलियानी

बुधवार, 19 सितंबर 2018

तू जाने ना

कैसे दिन बीते कैसे कटी रतियाँ तू जाने ना
नैना बरसें जागूँ सारी रतियाँ तू माने ना

एक एक पल ये बरस सम लागे
व्याकुल नैना रोयें अभागे
तुम बिन कौन सुने इस दिल की
पीर जो अंतर् में मोरे जागे
कासे कहूँ पिया दर्द मैं अपना तू जाने ना

क्या हालत है तुम बिन मोरी
कबसे राह देखत हूँ तोरी
अब तो विनती सुनलो मोरी
बावरी हो गई विरह में तोरी
दर्द से दूखन  लागि मोरी अखियाँ तू जाने ना
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 18 सितंबर 2018

मेरी मंजिल कहाँ है

हर तूफ़ां को इशारा मिलेगा
हर लहर को किनारा मिलेगा
उठेंगीं मोजें समुन्द्र में जब भी
किश्ती को लेकिन धारा मिलेगा

हम वो नहीं बैठ जाएँ जो थककर
अभी हौसला और यकीं है खुद पर
चाहे लाख  तूफ़ां राहों में आएँ
पूरा करेंगे जो शुरू किया है सफर

हैं फौलादी बाजू उमंगें जवां हैं
दिलों में उमड़ा हुआ तूफ़ां है
ये सफर तो जैसे इक इम्तहाँ है
बताए कोई मेरी मंजिल कहाँ है
@मीना गुलियानी

सदायें दिए जा

उठाए जा रंजो -ओ सितम और जिए जा
 न शिकवा जुबां पे ला अश्क अपने पिए जा

यही तेरी किस्मत का फैसला ऐ दिल
उठाए जा दर्दो -अलम दुआएँ दिए जा

सताये ज़माना तू परवाह न करना
उसी की इबादत का सहारा लिए जा

कोई गम नहीं गर जान भी जाए
तू चौखट पे उसकी सदायें दिए जा
@मीना गुलियानी 

रविवार, 16 सितंबर 2018

राहों से काँटे बुहारना

ऐ मन तू कभी भी हिम्मत न हारना
दिन जैसे भी हों तेरे हँसके गुज़ारना

मत घबराना गर हो गहन अँधियारा
मन दीप जलाकर कर लेना उजियारा
उस उज्ज्वल रौशनी में जीवन गुज़ारना

जीवन में सुख दुःख तो आते हैं जाते हैं
हौसले वाले केवल लक्ष्य अपना पाते हैं
हर हाल में तू खुश होके जीवन संवारना

चाहे पर्वत रोके राहें चाहे सागर पार उतरना
हिम्मत से सम्भव है हर मुशिकल से उबरना
तू खुद अपनी  कंटीली राहों से काँटे बुहारना
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

हमसफ़र हमनशीं न हुए

ऐ चाँद तू गवाह रहना
        मेरे उन पलों का जो
        दूरी में उनकी बिताए
        हर कदम पे धोखे खाए
        लब से कुछ कह न पाए

ऐ चाँद तू गवाह रहना
       मेरी उन हसीन यादों का
       जो संग पिया के गुज़रीं
       जो डोर बँधी न उलझी
       जब उलझी कभी न सुलझी

ऐ चाँद तू गवाह रहना
        पलों का जो हमारे न हुए
        साये की तरह साथ चले
        बेगानों की तरह मिले बिछुड़े
        हमसफ़र हमनशीं न हुए
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 13 सितंबर 2018

हम संग और झूमें ज़मी

है प्यारा सफर और कितना हसीं
सुहाना है मौसम और संग हमनशीं

कितने प्यारे ये गुलशन यहाँ हैं
फूल हर रंग के सब यहाँ हैं
प्यारे प्यारे हैं नज़ारे नज़र लगे न कहीं

लहरें टकरातीं जब भी यहाँ हैं
उमंगें दिल की हो जाती जवां हैं
खूबसूरत ये समां है बदल न जाए कहीं

चाँद तारों का लगता है मेला
मेले में भी क्यों दिल है अकेला
चलो साथी झूमें हम संग और झूमें ज़मी
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 12 सितंबर 2018

उसकी बलैंया लेती जाती

ये सुरमई शाम सुहाने झरने
कल कल बहता है पानी
ये हवा मदमस्त सी दीवानी
आई है रुत ये मस्तानी
नभ पर सितारे भी चमके
लगता है जुगनू जैसे दमके
खगवृन्द भी पंक्तिबद्ध आते
खुले व्योम में वो छा जाते
गाय चरकर शाम को आती
 कुमुदिनी देखो खिल जाती
चन्द्रमा भी गगन में निकला
चाँदनी को भी संग में लाया
 सितारों की ओढ़नी लहराती
जुल्फ़ें बादल सी बन जातीं
घटा में बिजुरिया चमक जाती
चाँदनी फिर पायल छनकाती
हिमकणों का मुकुट पहनती
मणिमेखला करधनी लटकाती
लगती वो स्वर्ग की अप्सरा सी
चले लज्जाती सकुचाती बलखाती
धरती उसकी बलैंया लेती जाती
@मीना गुलियानी

मंगलवार, 11 सितंबर 2018

कोहराम मचा रखा है

न कभी पूछ मुझसे वफ़ा में क्या रखा है
एक शोला सा है जो दिल में छुपा रखा है

कम नहीं होगी कभी मेरी वफ़ा तेरे लिए
वादा धड़कन ने ये कबसे निभा रखा है

ये ज़माना जिसे बेताब था दफन करने को
मैंने उस याद को सीने से लगा रखा है

सिर्फ़ नज़रों से ही बेताबी मिट जाती है
 फिर क्यों यूँ ही कोहराम मचा रखा है
@मीना गुलियानी

सोमवार, 10 सितंबर 2018

मन पंछी सा डोले

सखी री मोरा मनवा यूँ मुझसे बोले
भाग जगें मेरे जब उनके दर्श होलें

उन बिन मुझको चैन पड़े ना
डोलूँ इत उत ध्यान बँटे ना
छत पे कौआ भी बोले

आँखों से मेरे नीँद उड़ी है
प्यास जाने कैसी जगी है
दिल में उमंगें डोले

जाने कब आयेंगे साजन
बाट निहारूँ बनके पुजारन
मन पंछी सा डोले
@मीना गुलियानी 

रविवार, 9 सितंबर 2018

क्यों करूँ ख़ुद की फ़िक्र

पी जायेंगे खुद अकेले ही
यह चुप्पी का ज़हर
न हमसे कभी पूछना
क्यों छलकी ये नज़र
जुबां पर न लायेंगे कभी
शिकवा ज़माने भर का
न बतायेंगे किसी को कभी
क्या है अपनी अब खबर
पहले कभी न किया था जिक्र
सुना है तू नहीं है बेख़बर
फिर क्यों करूँ ख़ुद की फ़िक्र
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 8 सितंबर 2018

लट ये बिखर जायेगी

ऐ चाँद कुछ देर के लिए तू छिप जा
मुझे एक झलक उसे देख लेने दे
तेरे आने से वो शर्मा जाती है लेकिन
तेरे ओझल होने पर वो नज़र आएगी

सितारे फ़लक पे चमकने दो ज़रा
मेरी उम्मीद को भी जगने दो ज़रा
बाज़ी किस्मत की भी पलट जायेगी
उसके रुख पे लट ये बिखर जायेगी
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

मैं उदास नहीं

मैं भाव भरी हूँ इक बदली
आज आँगन तेरे बरस गई
कितनी दुविधा में तुमसे मिली
अखियाँ भादो सी बरस गईं

कितने वो स्वप्न सुहाने थे
गुज़रे वो कल के ज़माने थे
थे कुछ वो ख़्वाब अधूरे से
 लब पर दिल के फ़साने थे

उस पल का अब एहसास नहीं
लगता ही नहीं तू पास नहीं
मेरे दिल में समाया रहता है
अब देख मुझे मैं उदास नहीं
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 6 सितंबर 2018

यादों के दीप जलते हैं

जिंदगी के सफर में अब तो हम
तेरी यादों के साथ चलते हैं
तन्हा न रह सकेंगे तुझ बिन हम
थामके हाथ हम साथ चलते हैं

कभी मुझसे न दूर जाना तुम
न कभी आँख यूँ चुराना तुम
तेरे जाने से प्राण मेरे तो
लगता है जिस्म से निकलते हैं

न कभी मुझसे तुम खफा होना
रूठ जाऊँ तो तुम मना लेना
तेरे होने से सारी रौनक है
दिल में यादों के दीप जलते हैं
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 5 सितंबर 2018

इतरा रही थी

सूर्योदय के समय गगन की लाली
मन को आल्हादित कर रही थी
सूरजमुखी फूलों की आभा निखर रही थी
उषा नागरी भी अंबर पनघट में से
अपनी मटकी को भरने आई हुई थी
चन्द्रमा ने सितारों के साथ विदाई ली
सूरज की रश्मियाँ ज्योत्स्ना लुटा रही थीं
हरे पत्तों पर ओस की बूँदे चमक रहीं थीं
शीतल सुगंधित बयार मन लुभा रही थी
पक्षियों का कलरव सौंदर्य बढ़ा रहा था
उनकी कतार गगन की ओर जा रही थी
लोग हरी घास पर योगाभ्यास कर रहे थे
गाय के रम्भाने की आवाज़ आ रही थी
मुर्गे भी बांग देकर सबको जगा रहे थे
मंदिर में शंखनाद घण्टाध्वनि हो रही थी
बच्चे पेड़ों से अमरुद आंवले तोड़ रहे थे
किसान खेतों में ट्रैक्टर चला रहे थे
गाँव की पनिहारिनें गीत गा रही थीं
कुछ बच्चे खो खो कबड्डी खेल रहे थे
महिलाएँ आँगन में रंगोली बना रही थीं
धरा  स्वर्णिम आभा पर इतरा रही थी
@मीना गुलियानी


मंगलवार, 4 सितंबर 2018

जलाया जा नहीं सकता

सुनाऊँ क्या मैं ग़म अपना
तुझे बतला नहीं सकता
जो मेरे दिल की बातें हैं
तुझे समझा नहीं सकता

तुझे पाकर के खो देना
ये किस्मत की थी मजबूरी
मिलकर भी मिल नहीं पाए
गम भुलाया जा नहीं सकता

न जाने कैसा दौर आया
जिसने सितम है ये ढाया
जिग़र के हो गए टुकड़े
तुझे बतला नहीं सकता

गुलिस्तां ऐसा अब उजड़ा
बसाना जिसको मुश्किल है
वो शमा कैसे करूँ मैं रोशन
जिसे जलाया जा नहीं सकता
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 3 सितंबर 2018

मनवा मोरा हर्षाये

मतवारे तेरे नैन
लूटें मन का चैन
सितारे ये चमकें
बिजुरिया भी दमके
काले काले मेघा छाये
बारिश की बूँदे लाये
कोयलिया कूक मचाये
जियरा हुलसा जाए
मन मयूरा झूमे गाये
दिल पागल हुआ जाए
शीतल बयार मस्त बनाये
मन व्याकुल कर जाए
मलयानिल की पवन आए
पिया का संदेशा लाये
मनवा मोरा हर्षाये
@मीना गुलियानी 

रविवार, 2 सितंबर 2018

पछताओगे वरना

उन विशाल अट्टालिकाओं के पीछे से
कोई एकटक उसे निहार रहा था
एक विद्रूप सी स्मित रेखा थी उसके चेहरे पर
जो छल ,प्रपंच रच रही प्रतीत होती थी
वो भोली भाली ग्रामीण कन्या अपनी धुन में
इठलाते हुए  मंथरगति से चली जा रही थी
अचानक ही पीछे से उसने कन्या के कंधे पर
झपट्टा सा मारा तो उस कन्या ने पलटकर देखा
यकायक ही वो कन्या सकपका गई ,सहम गई
फिर भी उसने हिम्मत न हारी, वो पलटी
बिजली सी फुर्ती दिखाई ,सामने पड़े बांस को उठाया
पलटवार उस पर किया वो लड़खड़ाया और गिरा
वो ग्रामीण बाला अब साक्षात् चण्डी के रूप में थी
बांस त्रिशूल जैसा प्रतीत हो रहा था उसे घुमाने लगी
सीधा उसकी छाती पर तान दिया हुँकारने लगी
वो उसका चण्डी रूप देखकर डर गया
जल्दी से ही घबराकर उसके पाँव पड़ गया
अब वो लगा गिड़गिड़ाने लगा क्षमा मांगने
उस कन्या ने बोला फिर कभी ऐसा न करना
जान भी न बचा पाओगे पछताओगे वरना
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 1 सितंबर 2018

इस बारिश में

स्वप्न हुए सिन्दूरी अपने
इस मतवाली बारिश में
टिपटिप बरसा है पानी
छत पे रात भर बारिश में

बच्चों ने फिर नाव बनाई
पोखर तलैया में चलाई
पकौड़े और जलेबी खाई
इस मदमाती बारिश में

भीगी है धरती की चूनर
इस रुपहली बारिश में
मौसम फिर गुलज़ार हुआ
रिमझिम सी इस बारिश में
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 31 अगस्त 2018

जगमग चमकेंगे तारे

काला कौआ मुँडेर पे सुबह से बोले
सुनके काँव काँव जियरा मेरा डोले
शायद पिया का संदेशा वो ले आये
मनवा ख़ुशी से मेरा झूमे और गाये
काली कोयल जब भी कूक सुनाये
दिल को मेरे वो तो घायल कर जाए
अपनी मीठी  वाणी में बोल सुनाये
बतियाँ अपनी सारी वो कह जाए
खोलके अपनी खिड़की और चौबारे
आ बैठी हूँ राह में उनकी नैन पसारे
गगन चंदा तू भी ज़रा राह दिखाना
उनकी राहों से हम अब शूल बुहारें
आयेंगे जब लौटके वो पिया हमारे
गगन में तब जगमग चमकेंगे तारे
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 30 अगस्त 2018

शमा दिल में जगाएं

पूर्णिमा को चाँदनी रात थी
हम खो गए मधुरता में
लबों पे लग गए थे ताले
न तुम कुछ कह पाए
न मैं तुमसे कुछ कह पाई
जिंदगी के मधुर क्षण यूँ
बेख़बरी  से गुज़रते रहे
उलझने बढ़ती ही रहीं
दिलों मेँ फासले भी बढ़े
फूलों की सुरभि खोने लगी
दिलों की पीर मुखरित हुई
वेदना के सुर चुपके से बजे
मधुर गीत के बोल न सुने
आज फिर चाँदनी रात है
बारिश का भी साथ है
 पुराने गिले शिकवे मिटाएं
प्रीत की शमा दिल में जगाएं
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 29 अगस्त 2018

प्रतीक्षारत हूँ

कहने को तो मैं एक समुंद्र हूँ
अनगिनत लहरें भी मेरे पास हैं
मुझसे आकर रोज़ टकराती हैं
जाने क्या क्या वो कह जाती हैं
फिर भी न जाने क्यों तन्हा हूँ
मेरा तट भी कबसे सूना पड़ा है
इसे तुम बिन कौन रोशन करेगा
तुम्हारे आने से ही उजाला होगा
मेरा सूनापन भी स्वत; दूर होगा
तुम्हारी राहों के शूल मैं चुनता हूँ
तुम्हारी माला के लिए मोती सीपियाँ
रोज़ मैं अपनी तलहटी से चुनता हूँ
आज भी इसी तट पर तुम्हारे लौटने को
दोनों किनारों की बाहें पसारकर मैं
जाने कितने समय से प्रतीक्षारत हूँ
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 28 अगस्त 2018

मिलेगा मुकाम

ऐ दिल कहाँ खोई तेरी मंजिल
जीवन पथ में छाया अंधियारा है
रोशनी का है ना नामो निशाँ
कैसे ढूँढे  है  धुआँ ही धुआँ

खुशियाँ जाने कहाँ खो गई हैं
सदियों से राहें भी वीरां पड़ी हैं
डगमग सी डोले है नैया तेरी
कैसे खोजेगा तू अपना मकां

हर पल गम के फैले हैं साये
सब हुए बेगाने जो थे हमसाये
सब हुए अपने भी अब पराये
न खो हौंसला तो मिलेगा मुकाम
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 27 अगस्त 2018

वो गुज़रा ज़माना

आज फिर याद आया वो गुज़रा ज़माना
वो हर बात पर हमेशा तेरा यूँ मुस्कुराना

 मुहल्ले में मोटरसाईकिल पर चक्कर लगाना
बिना काम के भी सबसे मिलते हुए चले आना

वो सैर , सपाटे , दोस्तों संग पिकनिक मनाना
हर पल को बेफ़िक्री यूँ ही से ठहाकों में बिताना

एक पल को भी न कभी भी यूँ खाली गंवाना
हर पल ज़िन्दगी का है आखिरी पल समझाना

उन बीते लम्हों का अब मुझ पर ही  कहर ढाना
कोई तो कहीं से लौटा दे मुझे वो गुज़रा ज़माना
@मीना गुलियानी

रविवार, 26 अगस्त 2018

जिसकी अंतर्रात्मा शुद्ध हो

प्रेम तो ईश्वर की देन है
जरूरी नहीं तो जिस्मों में हो
यह तो आसमाँ से,ज़मीं से
चाँद सितारों से हवाओं से
इन बरसती घटाओं से
कल कल बहते झरनों से
पर्वत की श्रृंखलाओं से
दूर की अमराइयों से
वन की इन लताओं से
अपनों और बेगानों से
खामोशी से गुनगुनाने से
देश में या विदेश में भी
यह जागृत हो सकता है
यह तो पूजा है इबादत है
दिल और भावना का संगम
सत्य पर आधारित होना चाहिए
बिना छल कपट ईर्ष्या के
कहीं भी प्रकट हो जाता है
इसे छुपाना मुश्किल है
यह तो दिल की धड़कन में
संगीत की तरह बजता है
इसकी धुन वही सुन सकता है
जिसकी अंतर्रात्मा शुद्ध हो
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 21 अगस्त 2018

मेरी शान है तू

तू मेरी है आरजू तू ही मेरी है ज़ुस्तज़ू
जिधर भी देखूँ मैं नज़र आये तू ही तू

हरसू तेरी ही वफ़ा मुझको नज़र आती है
जाऊँ कहीं दूर तो तेरी ही सदा आती है
हर पल साथ है तू मेरा एहसास है तू

देखूँ जो पलट के कहीं तू नज़र आये वहीँ
तेरे कदमों के निशाँ चलें संग मेरे वहीँ
मेरा ये जहान भी तू और मेरी शान है तू
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 20 अगस्त 2018

तुझे कितना मेरा ख्याल है

तुझे कैसे कह दूँ मैं खुश नहीं
तेरे दिल में लाखों सवाल हैं
क्या जवाब दूँ यही सोचूँ मैं
तेरे सामने मेरा हाल है

 ये जिंदगी बेसबब सी है
ये रौशनी न मतलब की है
तू नहीं जब मेरे पास तो
सब रौनके भी मुहाल हैं

किस काम की ये जिंदगी
जो किसी के काम न आ सके
शिकवे शिकायतें क्या करूँ
मेरे दिल की कब मज़ाल है

सारी  हसरतें तेरे दम से हैं
मेरी हर ख़ुशी तेरे दम से है
तू है बेखबर कैसे कहूँ
तुझे कितना मेरा ख्याल है
@मीना गुलियानी

रविवार, 19 अगस्त 2018

मेरी पीर न जाने कोय

मेरी वीणा के सुर खोए
दुःख कासे कहूँ सजना
मेरी पीड़ा न समझे कोय
दुःख कासे कहूँ सजना

कहाँ पे भेजूँ लिख लिख पत्तियां
मैं वो गाँव न जानू
कैसे काटूँ जीवन तुम बिन
मैं ये ज्ञान न जानू
कैसे दर्श तिहारो होय

प्यासे नैना तरसें तुम बिन
कब आवोगे साजन
बिना तुम्हारे सूनी बगिया
गुल मुरझाए साजन
मेरे नैना छमछम रोये

बिजुरी मोहे अगन लगावे
बदरिया जियरा जलावे
तुम बिन कल नहीं पावत जियरा
तड़प तड़प रह जाए
मेरी पीर न जाने कोय
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 18 अगस्त 2018

जुदा न कर पाऊँ

कैसे तुझे मैं अपने दिल से भुलाऊँ

बसते हो तुम दिल की गहराईयों में
हर बात में तेरा जिक्र कैसे न लाऊँ

तुम तो मौसम की तरह बदल जाते हो
फिर भी खुद के साये से लिपटा पाऊँ

तेरा वजूद ऐसे  जर्रे जर्रे में है समाया
तेरा अक्स खुद से जुदा न कर पाऊँ
@मीना गुलियानी


शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

धरती का सुंदर श्रृंगार

आज धरती ने किया श्रृंगार
कुंकुम लगाई है माथे पर
हरित रंग के वसन पहनकर
घटा से कजरा चुराकर
अपने नैनों में लगाकर
फूलों के कंगन हैं पहने
जुगनू जैसे लगे चमकने
कानों में धान की बाली
शोभा है कैसी मतवाली
पैरों के नूपुर की शोभा
करधनी ने भी मन को मोहा
बिजुरी जैसी लगी दमकने
हीरे मोती लगे चमकने
झूले पड़े सावन की फुहार
धरती को मिली ख़ुशी अपार
नाचे मयूरा पपीहा करे पुकार
उमंग लेकर आई है बयार
वर्षा  से ही पूर्ण होता है
धरती का सुंदर श्रृंगार
@मीना गुलियानी

गुरुवार, 16 अगस्त 2018

नन्हीं चिड़ियाँ चहचहाएं

ख़िज़ाँ ही क्यों देखूँ, चाहे ख़िज़ाँ है
बहार क्यों न देखूँ , जिसका रंग जवां है

आओ फिर से गढ़े नई परिभाषा
दोहराएँ वही  प्यार की भाषा
अँधेरे से निकलें ढूँढे उजाला कहाँ है

कोई नई उम्मीद भी जगायें
बगिया को फिर से महकायें
गुलशन में नन्हीं चिड़ियाँ चहचहाएं
@मीना गुलियानी 

झूला झुलाओ सखियो

आज झूला झुलाओ सखियो
कदम्ब तले आओ सखियो

बहे  शीतल बयार
नीचे यमुना की धार
प्यार अपना लुटाओ सखियो

सभी झूलो साथ साथ
लिए हाथों में हाथ
कभी छूटे न साथ सखियो

गाओ मंगल के गीत
यही दुनिया की रीत
प्रीत दिल से निभाओ सखियो
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 15 अगस्त 2018

इसे तेरी ही ज़रूरत है

बादलों की ठंडी छाँव में
और मदमस्त हवाओं में
तेरा मेरा गर साथ हो
तो फिर क्या बात हो

एक तरफ सिर्फ तुम हो
दूसरी तरफ सारी दुनिया
दिल की डोर फिर भी
तुम तक खींच लेगी

तेरे दीदार की चाहत है
प्यार में ही राहत है
जिंदगी तेरी अमानत है
इसे तेरी ही ज़रूरत है
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 14 अगस्त 2018

खुशियों का पैगाम आयेगा

वक्त का हर दौर गुज़र जायेगा
ग़म भी ज्यादा न ठहर पायेगा

कोई कहदे उनसे कभी आके मिलें
दूर कर दूँगी मैं सब शिकवे गिले
कोई दर्द न दिल में ठहर पायेगा

जबसे तुम रूठकर यहाँ से गए
सपने सब काँच से बिखर गए
गुलशन बिन तेरे उजड़ जायेगा

तेरी परछाईं मुझसे बात करती है
तू नहीं पास तन्हाई बात करती है
कब मेरी खुशियों का पैगाम आयेगा
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 13 अगस्त 2018

डोले मन और मेरे सपने

बावरा मन देखता है कैसे कैसे सपने
कभी लगते बेगाने से कभी लगे अपने

सपनों में देखती हूँ सुंदर सी इक नदिया
पास में उसके है मेरी फूलों वाली बगिया
इन्हीं फूलों से बुनती हूँ ख़्वाब मैं अपने

प्यासी प्यासी अखियाँ भी देखती हैं राहें
आजा पिया कबसे तेरी राह ये निहारें
प्यासा प्यासा सावन न बीते बिन अपने

काली काली बदरी है छाई मोरे अंगना
कोई संदेशा पिया का लाई मोरे अंगना
पुरवइया संग डोले मन और मेरे सपने
@मीना गुलियानी 

रविवार, 12 अगस्त 2018

हम अपने गले लगाएं

आओ चिराग़ मिलकर जलाएँ
तिश्नगी दिल की हम मिटायें

जो लम्हे पीछे हमसे छूट गए
हम उन्हें याद करके मुस्कुराएं

टूटकर गिर गए जो शाखों से
उन्हीं फूलों को फिर से सजाएँ

जिंदगी की टीस हम भुलाएं
दर्द को हम अपने गले लगाएं 
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 11 अगस्त 2018

न डगमगाना है

जीवन की डगर नहीं है आसां
फिर भी तुझे चलते जाना है
चाहे दिल हो बोझ से भारी
कदम न तुझे पीछे हटाना है

रास्ते में विकट पहाड़ भी होंगे
टूटते साये भी साथ न होंगे
पर तुझ हर हाल में केवल
कदम को आगे ही बढ़ाना है

लहरें सागर के तट से टकरातीं हैं
बदरिया भी घिरके छा जाती है
कौंधती है डराती है दामिनी भी
पर रख हौंसला न डगमगाना है
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

कोई दिलाए वो हौसले

ऐ दिल क्यों तू इस कदर
होता है बेकरार क्यों
दिल का चमन उजड़ गया
गुलशन का ऐतबार क्यों

माली ने सींचा था प्रेम से
पौधा भी कितना बड़ा किया
पर जो नसीब में था लिखा
उसको वही है मिल गया

रुठी हैं अब फ़िज़ाएं भी
लो चल पड़ीं हवाएँ भी
महफिलें भी उठ गईं
बुझ गईं शमाएं भी

दिल को सुकूँ कैसे मिले
कैसे मिटाएं शिकवे गिले
कैसे कम हो ये फासले
कोई दिलाए वो हौसले
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 9 अगस्त 2018

हो जा प्रभु का दीवाना

ऐ दिल ढूँढ अपनी मंजिल
जलाके मन का दीपक
अँधियारा अन्तर  का मिटा
वीणा के तार कसके
सुर सप्तक तू जगा
मत भूल क्यों तू आया
कहाँ तुझको है जाना
ढूँढ अपना तू ठिकाना
छोड़ मृगतृष्णा की नगरी
हो जा प्रभु का दीवाना
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 8 अगस्त 2018

मेरी नैया पार की

स्वप्न सारे टूट गए
अपने सभी रूठ गए
बुझे गए चिराग सभी
तारे पीछे छूट गए

पर हम यहीं खड़े
राह पर रुके रुके
वक्त के उतार की
ढलान देखते रहे

कल तो सब बहार थी
खुशियाँ बेशुमार थीं
रौनके ही रौनके थीं
महफिलें थी प्यार की


बदल गया है वो समां
ख्वाब हो गया धुआँ
आसमाँ सुलग उठा
दिल मेरा बिलख उठा

नाव जब मंझधार थी
दिल ने इक पुकार की
पतवार तुमने थाम ली
मेरी नैया पार की
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 7 अगस्त 2018

ये माज़रा क्या है

ऐ मेरे हमनशीं हुआ क्या है
क्या है तेरा मर्ज़ और दवा क्या है

मैं तो कुछ जानती नहीं तू बता
अपनी हालत का पता मुझको बता
सुनके कर दूँगी फैसला क्या है

ग़मों को तुम दबाए बैठे हो
कबसे मुझसे छुपाए बैठे हो
आखिर इस उदासी का सबब क्या है

कैसे इस जिंदगी को काटूँगी
तू है चुपचाप कैसे दुःख बाँटूगी
सबब इस तन्हाई का क्या है

हम नहीं हैं ग़ैर क्यों बताते नहीं
दिल में यूँ ग़मों को भी छुपाते नहीं
तुम्हीं कहदो ये माज़रा क्या है
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 6 अगस्त 2018

आत्मबोध भी वो कराने लगा

आज मन में आस का पंछी
फिर से नीड़ बनाने लगा
नई उमंगों से नई तंरंगों से
सपने नए वो सजाने लगा
खिलती हुई नई कलियों को
वो चुनकर ख़्वाब बुनने लगा
फूलों से राहें सँवारने लगा
गीतों की माला पिरोने लगा
उम्मीदों के पँख बिखराने लगा
ख़ुशी के गीत गुनगुनाने लगा
इस डाली कभी उस डाली पर
वो फुदकने लगा बौराने लगा
जोश में झूमने लगा कूदने लगा
मस्ती में गाने लगा मुस्काने लगा
कानों में रस वो घोलने लगा
सबसे मीठा मीठा वो बोलने लगा
मन की भाषा को समझाने लगा
अनकही बातें भी वो बताने लगा
प्रेम का सबक वो सिखाने लगा
आत्मबोध भी वो कराने लगा
@मीना गुलियानी 

रविवार, 5 अगस्त 2018

चली पुरवाई जो आँगन में

चुपके चोरी से जगा के गया
ये कौन आया मेरे आँगन में
सपने भी सारे जाग उठे
महक उठे हैं फूल आँगन में

धीरे धीरे चुपके से आया है कोई
यादों में मेरी समाया है कोई
दिल मेरा तो झूम उठा
अँचरा उड़ा है आँगन मेँ

उसके ही ख्यालों में खोने लगी मैं
जागते ही जागते सोने लगी मैं
सोये सपने जाग उठे
चली पुरवाई जो आँगन में
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 4 अगस्त 2018

दिल पर तू खाए बैठा है

क्यों तू नज़रें झुकाए बैठा है
ऐसा क्या  राज़ छुपाए बैठा है

दिल लगाना तो कोई खेल नहीं
तू क्यों दिल को लगाए बैठा है

क्या सिला मिला तुझे वफाओं का
चोट इस दिल पर तू खाए बैठा है
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 3 अगस्त 2018

नैनों की भोली चितवन

मन भूला नहीं मधुर क्षण
स्वीकारा था तुमने निमन्त्रण
आँखों ही से हुई थी बतियाँ
चाहत भरी तेरी वो पतियाँ
कितना माधुर्य भरा था
नैनों में प्यार उमड़ा था
मदभरे थे वो चंचल नैना
दिल बोल उठा क्या कहना
तेरे नैना भी सकुचाए
लब कुछ भी बोल न पाए
हिरणी सी तेरी दो आँखें
मेरे दिल का चैन उड़ाए
कस्तूरी सी गन्ध है तुझमें
उसे पाके खिंचा आता मन
जाने क्या जादू किया है
तेरे नैनों की भोली चितवन
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 2 अगस्त 2018

माला भी मुरझाए

जाने काहे  बदरा  घिर आए
जिया मोरा कल नहीं पाए

सूना मोरा अँगना आये नहीं सजना
राह तकत  मोरी अखियाँ थक जाएँ

कासे कहूँ बैना सूने हैं दिन रैना
दिन उगे फिर दिन ये ढल जाए

सूनी मेरी वीणा संगीत के बिना
बाती मन की जले फिर बुझ जाए

छिप गए हैं तारे छाए अँधियारे
सपनों की माला भी मुरझाए
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 1 अगस्त 2018

क्यों ओझल बता मुझे

ये किसकी पदचाप सुनाई दी मुझे
लगा तूने ही शायद सदा दी है मुझे

तेरे आने की कुछ महक सी आई
हवा का झोंका छूके गया मुझे

जाने क्यों दिल को इंतज़ार तेरा
जोशे जुनून ने भी तड़पाया मुझे

तू ही मेरी आरज़ू ज़ुस्तज़ू भी है
 नज़र से क्यों ओझल बता मुझे
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 31 जुलाई 2018

बारिश की फुहार रंग लाई

रिमझिम रिमझिम बूँदे आई
छमछम बरसीं आज ज़मी पर
नभ में कितने सारे हैं पक्षी
खुश होते सब गगन में उड़कर
कोयल भी है कूक सुनाती
अबके मन को है वो हर्षाती
पपीहा ऊँची टेर लगाता
पी पी करके मेघ बुलाता
फिर आती भेड़ों की टोली
बच्चे उनसे करते ठिठोली
उनके आगे पीछे वो भागें
वो सब अपना रास्ता नापें
नाव चलाने की आई है बारी
बच्चे करने लगे हैं तैयारी
कागज़ की सब नाव बनाते
ठुमक ठुमक पानी में चलाते
बादल फिर आता इतराकर
बरसाता बारिश वो मनभर
मेंढक भी टर्राने लगता है
मेघ को बुलाने लगता है
गगन में इंद्रधनुष बन जाता
जिसे  देखना मन को लुभाता
धरती पर छाई हरियाली
जिसे देख फूला है माली
हरित तृणों पर चमके मोती
जगमग जगमग आभा होती
झूलों की फिर आई है बारी
झूले है वृषभानु की दुलारी
कान्हा जी उनको झूला झुलाएं
सभी मिलजुल कर ख़ुशी मनाएं
सौंधी सौंधी खुशबु सी आई
बारिश की फुहार रंग लाई
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 30 जुलाई 2018

उसे सामने मैं पाऊँ

मैं अपनी दुआओं में वो असर कहाँ से लाऊँ
जो दिल को तेरे लुभाए वो सदा कहाँ से लाऊँ

तू बेख़बर है मुझसे नाराज़ मैं नहीं हूँ
हूँ परेशां फिर भी तुझसे खफ़ा मैं नहीं हूँ
तेरे दीद की है हसरत तुझे कैसे मैं बुलाऊँ

तू किधर जा छिपा है दिल मेरा ढूँढता है
दे इक मुझे इशारा ये ज़माना पूछता है
जो नज़र से आज ओझल उसे सामने मैं पाऊँ
@मीना गुलियानी 

रविवार, 29 जुलाई 2018

मिटाये तपन

कैसा ये मिलन
तरसे है मन
बेकल चितवन
उलझे हैं नयन
ठंडी ये पवन
लगाए अगन
सुलझाए कैसे
बड़ी उलझन
लाये संदेशा
मस्त पवन
लहरों सा डोले
देखो ये मन
करे व्यर्थ चिंतन
चातक पी पी की
लगाए रटन
कोयल की कूक
अकुलाए मन
फूलों पे करें
भँवरे गुञ्जन
बारिश बरसाए
देखो ये घन
धरती की ये
मिटाये तपन
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 28 जुलाई 2018

उस पार ले चल

कैसे करूँ तुम पर यकीं
तुम अभी भी बदले नहीं
जहाँ पर तुम पहले खड़े थे
आज भी तुम जमे हो वहीँ

दिल को एहसास तो है
थोड़ा सा विश्वास तो है
पर है सब कुछ अधूरा सा
जाने कैसा कयास सा है

मन में होती है उलझन
दिल में होती है हलचल
शांत लहरें भी मचली
कहती उस पार ले चल
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 27 जुलाई 2018

कली कली है मुस्काई

आज सुबह ही गगन ने
उषाकिरण की लालिमा से
धरती की मांग सजा दी
हरित तृणों को संवारकर
पग में पायल पहना दी
टेसू के फूल पीसकर
पैरों में महावर रचा दी
हरे पत्तों की मेहँदी लगा दी
मोगरे चमेली से गजरा बनाया
धरती के बालों पे लगाया
संध्या ने भी खेल रचाया
चंदा को धरती से मिलाया
तारों की चुनरी ओढ़ाकर
धरती को दुल्हन सा सजाया
चपला दामिनी चमकी नभ में
बदरी भी देखो घिर आई
मस्ती की बयार चहुँ ओर छाई
आज हर कली कली है मुस्काई
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 26 जुलाई 2018

दोनों मर्जी है आपकी

हे मेरे गुरुदेव करुणासिन्धु करुणा कीजिए
हूँ अधम अधीन अशरण अब शरण में लीजिए

खा रही हूँ गोते मैं भवसिंधु मँझधार में
आसरा है दूसरा न कोई अब संसार में

मुझमें  है जप तप न साधन न कोई ज्ञान है
निर्लज्जता एक बाकी और बस अभिमान है

पाप बोझे से लड़ी नैया  भंवर में आ रही
नाथ दौड़ो अब बचाओ जल्दी डूबी जा रही

आप भी यदि छोड़ देंगे फिर कहाँ जाऊँगी मैं
जन्म दुःख से नाव कैसे पार कर पाऊँगी मैं

सब जगह से प्रभु भटककर ली शरण आपकी
पार करना या न करना दोनों मर्जी है आपकी
@मीना गुलियानी

बुधवार, 25 जुलाई 2018

घर को भी वो महकाएं

कुछ मीठे सुनहरे पल
आकर ठहर गए दो घड़ी
मेरे घर की दहलीज़ पर
वो भीनी यादें लाकर इस
बारिश में सराबोर करेंगे
मैं भी भीगना चाहती हूँ
उन पलों को अपने आँचल में
समेटकर रखना चाहती हूँ
वो पल बहुमूल्य धरोहर हैं
जो बचपन से यौवन की
लम्बी दूरी तय करके आये हैं
उन पलों के लिए मैंने अपने
घर का दरवाज़ा खुला रखा है
पता नहीं कब वो भीतर आएँ
ठंडी हवा लायें और बारिश की
भीनी सौंधी सी खुशबु से
मेरे घर को भी वो महकाएं
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 24 जुलाई 2018

धरती की दी प्यास बुझा

आज सुहानी बरखा आई
धरती भी कितनी हर्षाई
फूल लगे देखो इतराने
भँवरे भी लगे मंडराने

कोयल ने फिर कूक मचाई
छमछम करती बारिश आई
कोंपल पर लगी मोती सी
दमके  हीरे नग की जैसी

धरती की हरियांली देखो
चंदा का शर्माना देखो
बदली में जाके छुप गया वो
तारों को लेके संग लिए वो

मोर लगा झूमने नाचने
पी पी करके बोला पपीहा
मेघ ने पानी दिया बरसा
धरती की दी प्यास बुझा
@मीना गुलियानी


सोमवार, 23 जुलाई 2018

महल नज़र आने लगी

जबसे आये वो मेरी जिंदगी में
जिंदगी खुद ही मुस्कुराने लगी

बहुत कुछ उनसे पाया है हमने
बातें सब समझ में आने लगीँ

पहले मुझसे नज़रें चुराते थे वो
फासलों में कमी फिर आने लगी

चुपके से दिल में वो समाने लगे
झोंपड़ी भी महल नज़र आने लगी
@मीना गुलियानी 

रविवार, 22 जुलाई 2018

मैंने इससे सीखा

एक दिन इक नन्ही तितली
उड़ती हुई आई मेरी बगिया में
बैठी वो इक फूल पे पहले फिर
वो बारी बारी से लगी कूदने
कभी इस फूल पर कभी उस पर
उसके पँख बहुत सुन्दर थे
रंग भी उनका था चटकीला
सब फूलों का पराग वो लेकर
बैठी चुपचाप मेरी हथेली पर
फिर उड़ गई वो हाथ से मेरे
अपने सारे रंग वहीं छोड़कर
मेरा मन भी वहीं खो गया
कुछ सोच में मैं खो गया
विधाता ने क्या इसको रचा है
इंद्रधनुष सा रंग इसको दिया है
मुक्त गगन में वो उड़ती है
दिल में सबके उमंग भरती है
सारा दिन फूलों से पराग चुनती
मेहनत से कभी नहीं वो थकती
रेशम सा कोमल जिस्म है इसका
जीवन में रंग भरना मैंने इससे सीखा
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 21 जुलाई 2018

सुबह करती हूँ ध्यान

सुबह के पौ फटते ही
उषा ने लाली बिखराई
उधर से ची ची करती हुई
इक सुंदर सी चिड़िया आई
फुदक रही थी वो डाली पर
दाना वो चोंच अपनी में भर
नन्हा चूज़ा भी था साथ में
उछल रहा था वो खुश होकर
चोंच में अपनी दाना भरकर
चिड़िया उसे खिलाती पेटभर
अपने डैनों को फैलाकर वो
नन्हे चूज़े को देके सहारा
वो गगन में उड़ना सिखाती
उसे देखना मुझे भाता है
पक्षियों का ये कलरव भी
मधुर संगीत बन जाता है
तोता मैना और कबूतर
कोआ  गौरेया और तीतर
सारे रोज़ ही दाना चुगने
पहुँच जाते हैं मेरी छत पर
प्रभु जी की ये किसी माया
कैसा उसने भी खेल रचाया
हर प्राणी को वो खुश रखता
सबका रोज़ पेट वो भरता
करती हूँ मैं उन्हें प्रणाम
रोज़ सुबह करती हूँ ध्यान
@मीना गुलियानी

शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

बचाले तू मुझे

यहाँ क्या हो रहा है , नहीं तू बेख़बर है
मेरी बन्दगी है कम , तुझे पूरी फ़िक्र है

मैंने कब माँगा तुझसे, झोली में खज़ाना भर दे
जो भी दे ख़ुशी से , पर इतनी मेहर दे
तू सुख दे या ग़म ,पर आँखे न हों नम
मैं हूँ खुदगर्ज़ इंसान ,माँगती हूँ तुझसे रहम दे

दुनिया ठुकराती है , तेरा दर नज़र आता मुझे
तू ही इक सहारा है , तू ही किनारा दे मुझे
मेरे पापों ने ,मेरे कर्मों ने डुबोया है मुझे
तू ही खिवैया बन ,पार लगा ,बचाले तू मुझे
@मीना गुलियानी 

वो गुज़रा ज़माना

किसी शाम सा था  तेरा
मेरी जिंदगी में ठहरना
बेशक वो था ज़रा सा
लेकिन बेहद ही खूबसूरत

अब तक भुला न पाया
 वो गुज़ारे जो हमने साथ
तन्हाई के रोमांचक पल
 मेरा जीवन दिया बदल

याद आती हैं तेरी बातें
वो मुलाक़ातें चाँदनी रातें
तेरा गुनगुनाना मुस्कुराना
कोई लौटादे वो गुज़रा ज़माना
@मीना गुलियानी



मंगलवार, 17 जुलाई 2018

आँगन में बरसने लगेंगी

तुम अपनी मस्त चाल चलते रहो
नदिया भी तुम संग बहने लगेगी

तुम आज खिलखिलाकर हँसदो ज़रा
फ़िज़ाओं में रंगत बिखरने लगेगी

बालों में गजरा तुम लगाओ ज़रा
हवा ये गुलों से महकने लगेगी

तुम हवाओं में झूमो तो आज
लताएँ तुम संग थिरकने लगेँगी

फुरसत के क्षण कुछ निकालो ज़रा
खुशियाँ आँगन में बरसने लगेंगी
@मीना गुलियानी

सोमवार, 16 जुलाई 2018

आके ख़्वाबों में मिलें

कभी ऐसी भी हवा तो चले
कौन कैसा है पता तो चले

तुम उठके अभी से कहाँ को चले
अभी तो मिटाने हैं शिकवे गिले

कितनी मुद्दत बाद हमें तुम मिले
मिटाने हैं सदियों के ये फ़ासले

अभी तो शुरू किये बातों के मसले
पूरे कहाँ होंगे अभी ये सिलसिले

उम्मीदों को अपनी जगाए  रखना
कहना उनसे आके ख़्वाबों में मिलें
@मीना गुलियानी 

रविवार, 15 जुलाई 2018

खुशबु को पाकर महकने लगे

बहुत दूर है तुम्हारे घर से
हमारे घर का ये किनारा
पर हम हवा से पूछ लेते हैं
क्या हाल है अब तुम्हारा

यूँ तो आती जाती बदली
तुम्हारी राह पे जब कौंधती है
हम चौंक उठते हैं देखकर
छुपा है इसमें तुम्हारा इशारा

फूल पत्ते सब मुस्कुराने लगे
नग्में  सब प्यार के गाने लगे
दिल को ये दिन सुहाने लगे
जुगनू भी अब जगमगाने लगे

पत्ते  चिनारों से गिरने लगे
ओस के कण बिखरने लगे
फूलों से दामन हम भरने लगे
खुशबु को पाकर महकने लगे
@मीना गुलियानी




शुक्रवार, 13 जुलाई 2018

बरसात चली आई

तुम मिले ,बिछुड़े , पर जब फिर से मिले
मेरी जिंदगी में ख़ुशी की इक किरण आई

अब यह क्या हुआ अचानक ख़ुशी हमारी
किसी से देखे न बनी देखते ही जुदाई आई

 कोई बात नहीं क्या हुआ जो तुम पास नहीं
दिल के कोने में तेरी याद चुपके से चली आई

है मन भी कुछ उदास इसे भी है प्यार की प्यास
पलकें भी हैं भीगीं अन्जाने ही बरसात चली आई
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 12 जुलाई 2018

पायल अपनी छनकाई है

आज धरती दुल्हन सी नज़र आई है
ओढ़ तारों की चुनर खुद ही शरमाई है

चाँद भी देख रहा तिरछी नज़र से उसको
गगन भी डोल उठा दे हिण्डोला उसको
बादल ने रिमझिम बारिश भी बरसाई है

देखो कैसा बदला समां हर नज़ारा है जवां
पत्ता पत्ता बूटा बूटा बोले नज़रों की जुबां
फूल से भँवरे ने भी प्रीत कैसी लगाई है

कोई अजनबी न रहा सब हो गए अपने
अरमां जगने लगे सच हो गए सपने
जुगनू चमकने लगे बजी कहीं शहनाई है

अंबर खुश है बहुत धरती का बदला समां
दोनों हिलमिल से गए चाँद हो गया बेजुबां
आज धरती ने पायल अपनी छनकाई है
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 10 जुलाई 2018

दिल पे इख़्तेयार

आओ कहीं छिप जाएँ खो जाएँ फिर इक बार
धीरे धीरे चुपके से फिर आएगा खुमार

मुझको अभी भी याद है जब तुमसे हम मिले
कितनी सुहानी शाम थी कैसे थे सिलसिले
कैसे भुलाएं मस्त पवन वो शाम की फुहार

थामे हमारे हाथों को जब साथ तुम चले
ऐसा लगा कि जल उठे बुझते हुए दिए
तबसे तुम्हारी याद में दिल मेरा बेकरार

बरखा की रुत सुहानी लो मदमाती आ गई
दिल पे मेरे वो बिजलियाँ आके गिरा गई
ऐसे में भला रहता है कब दिल पे इख़्तेयार
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 9 जुलाई 2018

अचानक बुझती है

इक सेज़ पे मातम छाया है
इक सेज़ सजी फूलों वाली
इक चमन का मालिक हँसता है
इक बाग़ का रोता है माली

इक द्वार पे बजती शहनाई
इक द्वार से अर्थी जाती है
इक मांग तो लो सिन्दूर भरा
इक मांग उजड़ती जाती है

इक महफ़िल लो आबाद हुई
इक बज़्मे मुहब्बत लुटती है
देकर के उजाला औरों को
इक शमा अचानक बुझती है
@मीना गुलियानी 

रविवार, 8 जुलाई 2018

मूक पुकार न की

नीरव निशीथ में चन्द्र किरण
ज्योत्स्ना हास से धवलित हो

सच कहना तव उर सपनों में
मिलने की मृदु मनुहार न थी

क्या कभी तुम्हारे प्राणों ने
प्रियतम की मूक पुकार न की
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 7 जुलाई 2018

बिन खिले मुरझाई है

आज फिर से तुम्हारी याद चुपके से चली आई है
मेरे मन की कली भी होले से फिर मुस्कुराई है

तुमने न आने की कसम कभी खाई थी
तब तुमने दिल तोड़ने की रस्म निभाई थी
तुम्हारी याद ने फिर बगिया मेरी महकाई है

दिल को सुकूँ मिलता है तुझे याद करके
मुझे हौसला मिलता है चाहत का रंग भरके
जाने न हम क्यों  होती दुनिया में रुसवाई है

तुम्हें कसम है मेरी दूर तुम न जाया करो
जाओ कभी तो जल्दी ही लौट आया करो
वरना  तमन्ना मेरी बिन खिले मुरझाई है
@मीना गुलियानी

शुक्रवार, 6 जुलाई 2018

अंतर्मन की छटपटाहट

पत्थर से बना है घर हर दीवार रंगीन है
इसमें रहने वालों की जिंदगी संगीन है
जो होना है वो होके  रहेगा इक दिन
पर काटे नहीं कटता हर लम्हा हर दिन

दिखने में तो यह इक महल बना है
नीँव कहाँ है  ?   किसपे खड़ा है  ?
सब देखते  इसकी बाहरी सजावट
नहीं दिखती अंतर्मन की छटपटाहट
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 5 जुलाई 2018

तुझे पा लूँगा

मचल रही यूँ यादें तेरी
लहर लहर जैसे झील का पानी
मैंने कभी सोचा था कि
सच में न सही झूठ ही सही
यथार्थ में न सही ख़्वाब में सही
मैं अवश्य तुम्हें पा लूँगा
पर तू सच ही निकली
जिंदगी ख्वाब ही रही
मैं अपने तसव्वुर के पुल बाँधूगा
तू न सही तेरा अक्स ही सही
अपनी यादों में ही सही तुझे पा लूँगा
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 4 जुलाई 2018

दो मसले

बस ये दो मसले 
जिंदगी भर न हल हुए 
न नींद पूरी हुई 
न ख़्वाब मुकम्मल हुए 
वक्त ने कहा कि काश 
थोड़ा और सब्र होता 
सब्र ने कहा कि काश 
थोड़ा और वक्त होता 
बचपन में पैसा जरूर कम था 
पर उस बचपन में दम था 
अब पास में महँगा मोबाईल है 
पर गायब वो बचपन की स्माईल है 
ऐसी बेरुखी देखी है हमने 
कि लोग आप से तुम तक 
तुम से जान तक और 
जान से अनजान बन जाते हैं 
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 3 जुलाई 2018

मेरे नाम से पहले

दिले नाकाम लूट चुका है अंजाम से पहले

मेरी तकदीर का सितारा भी अभी टूटा है
आवाज़ आई थी शिकस्ते जाम से पहले

तुम्हारी याद हमेशा ही क्यों आती है हमें
सितारे फलक में चमकते हैं शाम से पहले

कैसे जानेगा कोई दिल में उमड़ते हुए तूफ़ान
इक सन्नाटा सा छाया है कोहराम से पहले

मेरी बर्बादी के अफ़साने जहाँ में जब होंगे
तुम्हारा नाम भी आएगा मेरे नाम से पहले
@मीना गुलियानी 

दिल चमकाने को

बेल सी वो लिपटी रही खुशी पाने को
लबों को खोला जिसने मुस्कुराने को

कोशिशें तमाम की उसने ग़म भुलाने को
सब नाक़ाम हुईं मगर राह पे उसे लाने को

सिर्फ बजरी सीमेंट से आशियाँ नहीं बनता
दिल को भी जलाना पड़ता है इसे बनाने को

तेरा अक्स तो खुद ब खुद ही उभर आएगा
कोशिश करो आईना ऐ दिल चमकाने को
@मीना गुलियानी 

रविवार, 1 जुलाई 2018

मकां सा है

आसमां आग ये उगलता है
सारा मंज़र धुआँ धुआँ सा है
तुमसे दुश्मनी क्या हुई
ख़ाक गुलिस्तां सा है
शहर ये बेज़ुबाँ सा है
ले गया कहकहे हमारे सब
जो बना मेहरबां सा है
मुन्तज़िर यूँ तो ये जहाँ सा है
तेरे दहलीज़ पर कदम जो पड़े
जगमगाने लगा मकां सा है
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 25 जून 2018

ये रिश्ता कैसा है

छलकते हुए अश्कों ने बताया दर्द कैसा है
उसकी बेरुखी ने समझाया हमदर्द कैसा है
 घमण्ड ने जताया उसके पास  खूब पैसा है
व्यवहार ने बताया उसका परिवार कैसा है
मीठी वाणी से पता चला  वो इंसान कैसा है
तल्खियत से पता चला ज्ञान कितना है
स्पर्श से पता चला कि वो व्यक्ति कैसा है
वक्त ने बता दिया कि ये रिश्ता कैसा है
@मीना गुलियानी 

रविवार, 24 जून 2018

ऐसी मिली सौगात है

जाने क्या बात है , नींद कोसों दूर है
           ढलने को रात है

उसने क्या है कहा जो था मैंने सुना
अनकही  बातों का सिलसिला चला
बातों बातों में ढलने लगा जो समां
अब शुरू हो गई फिर वही बात है

तूने जो भी कहा  वो अधूरा ही कहा
वादियों में गूँज उठी इसकी सदा
चुपके चुपके से कह गई कान में
आज होने लगी फिर वो बरसात है

फूल पत्ते चिनारों के कहने लगे
धड़कनें बनके दिल में रहने लगे
खामोशी बन गई जुबां आज तो
खुशियों की ऐसी मिली सौगात है
@मीना गुलियानी

शनिवार, 23 जून 2018

तमन्ना निकल जायेगी

 तेरे चुप रहने से जां चली जायेगी
मुस्कुराओगे तो जां में जां आयेगी

गेसुओं में न मुखड़ा छिपाया करो
थोड़ा थोड़ा सा यूँ मुस्कुराया करो
दिल की बुझती शमा भी जल जायेगी

मुझसे नाराज़ हो माफ़ कर देना तुम
हूँ खतावार मुझको सजा देना तुम
रूठने से घटा ये बरस जायेगी

तेरे नाराज़ होने से बदला समां
दिल की बेताबियों से उठता धुआँ
खुश रो हर तमन्ना निकल जायेगी
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 22 जून 2018

अंत भूलता नहीं

मेहनतकश इंसान कभी घबराता ही नहीं
ज़मीं हो या आसमां थर्राता वो नहीं

सर झुकाकर रहना सीखा है उसने
कभी गुरूर से गर्दन तानता वो नहीं

जानता है वक्त लगता बड़ा होने में
इस पर भी हार मानता ही वो नहीं

उसकी मेहनत जब भी रंग लाती है
बावजूद इसके भी इतराता वो नहीं

अपनी हैसियत का खूब पता है उसे
माटी में मिलना है अंत भूलता नहीं
@मीना गुलियानी 

मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं

मेरे मन में भावनाओं का समुद्र
हर समय उमड़ता ही रहता है
इस ज्वारभाटे को रोका नहीं जा सकता
रोकने पर अश्रुधारा के रूप में ये
प्रवाहित होने लग जाता है
इसके बहाव  पर लगाम लगाना
नामुमकिन है , टेढ़ी खीर है
वैसे तो इसके अविरल रूप से
प्रवाहित होने से मन शांत होता है
नैराश्य धुल  जाता है चैतन्य
जागृत होने पर आप जिस ओर चाहो
इसे पुन: आकृष्ट कर  सकते हो
आध्यात्मिकता ,वैराग्य,भक्ति
कहीं भी मोड़ सकते हो
जीवन की पृष्ठभूमि पर एक
नई व्याख्या लिख सकते हैं
मन के भीतर दीपक प्रज्वलित करके
गहन अन्धकार मिटा सकते हैं
मन को साधकर कुण्डलिनी को
जागृत करके मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं
@मीना गुलियानी

बुधवार, 20 जून 2018

कोई गुनगुनाता है

अरे पपीहे तू क्यों इतना मुझे रुलाता है

जुबां पे तेरी पी पी नाम क्यों आता है
सदा ऐ ग़म की किसको तू सुनाता है

जो पहले से दुखी हो क्यों उसे सताता है
जो खुद ही जल रहा हो क्यों जलाता है

तू ये रोज़ आँसू किसके लिए बहाता है
जो सुनता नहीं क्यों दर्द उसे बताता है

चला जा  यहाँ से मत बर्बाद कर जिंदगी
कारवाँ तेरी मुहब्बत का लुटा जाता है

बसा ले आशियाँ जहाँ मिले सुकूँ का निशाँ
बसाले बस्ती ख़ुशी से कोई गुनगुनाता है
@मीना गुलियानी

मंगलवार, 19 जून 2018

दीपक बुझा न सके

दिल से हम तुम्हें भुला न सके

साथ आँखों ने हमारा तो दिया
आँसुओं ने सहारा हमें तो दिया
दाग ऐ दिल फिर भी मिटा न सके

चाँद में देखी है तेरी सूरत
रात बन गई एक मुसीबत
गम के बादल हम हटा न सके

आहों ने भी तो आग लगाई
आँसुओं ने बिजली गिराई
हम जले दीपक बुझा न सके
@मीना गुलियानी




सोमवार, 18 जून 2018

निश्छल हृदय से है

विश्वास है एक आस
भरोसा है एक अहसास
कुछ पाने का कुछ खोने का
क्षणिक भर छलना बन रहने का
तेरा ही संग पाने का तू मेरा है
इसकी अनुभूति ऐसी है जैसे
पंछी को परों से
भक्त को ईश्वर से
शिशु को माँ से
पत्ते को डाली से
शब्द को आवाज़ से
आवाज़ को संगीत से
संगीत को आराध्य देव से
यथार्थ को धरातल से
प्रेमी को निश्छल हृदय से है
@मीना गुलियानी 

रविवार, 17 जून 2018

अपनी राह चल दिया

कल एक फूल ने पूछा मुझसे
तुम क्यों उदास चुपचाप हो
बोला तुम अपनी पीड़ा मुझसे कहो
यूँ न गुमसुम से तुम बैठे रहो
दिल है क्यों हैरान और पशेमान
किसने किया है तुम्हें परेशान
अपनी उलझनें बताओ तो ज़रा
क्यों खामोश रहते हो बताओ ज़रा
मैं चुपचाप सब सुनता ही रहा
अब मुझे लगा कोई मिल गया
ग़म हल्का करलूँ यकीं मिल गया
मैं चुपके से चला पगडंडी के पार
धीरे धीरे से आई वो ठंडी बयार
छूके मुझे होले से कानों में बोली
कुछ बातें मुझसे करो हमजोली
जाने क्या नशा सा छाने लगा
उसकी बातें सुन मुस्कुराने लगा
उसने हल्की सी की सरगोशियाँ
वादियों में मेरी गूँजी सिसकियाँ
मेरा सारा ग़म आँसुओं में ढल गया
मुस्कुरा के मैं अपनी राह चल दिया
@मीना गुलियानी

शनिवार, 16 जून 2018

,तेरी ये ओढ़नी

पिया मैंने ओढ़ली ,तेरी रंग भरी ओढ़नी

तूने प्यार से दीन्हि मुझको
रंग भी सारे दे दिए मुझको
भीग गई तेरे रंग में , भीगी ये ओढ़नी

पिया न फीका होवे रंग
ऐसो रंगो न होवे बदरंग
कसके चास लगाओ ,फीकी न होवे ओढ़नी

कितने जतन से ओढ़ूँ इसको
प्रेम से कितने सहेजूँ इसको
बार बार मुस्काऊँ पहनकर ,तेरी ये ओढ़नी
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 15 जून 2018

छनकने लगी है

आने से तेरे जैसे बहार आ गई है
ख़्वाबों की दुनिया सजने लगी है

सवरने लगे फूलों के गुंचे भी अब 
हवा भी रुख अपना बदलने लगी है
खिली देखो सरसों जूही ,चमेली
 दिल की बगिया महकने लगी है

फूलों ने देखो बिछाई है चादर
उषा भी अपनी लाई है गागर
सूरज की लाली लगी है चमकने
गागर भी अब छलकने लगी है

हँसी शाम अब तो होने को आई
सितारों ने अपनी महफ़िल जमाई
चंदा गगन में लगा मुस्कुराने
शबनम भी देखो बहकने लगी है

रंगीन मौसम रुत भी जवां है
फूलों से महका ये गुलिस्तां है
मिले आज तुम हर अरमां जवां है
 पायल ख़ुशी से छनकने लगी है
@मीना गुलियानी




गुरुवार, 14 जून 2018

बहुत ख़ास हूँ मैं

सत्य क्या है पता नहीं
अभी तक उसकी तलाश में हूँ
धैर्य क्या है फिर भी शायद
उसके आस पास हूँ मैं
आकाश के तारों में नहीं
चन्द्रमा के दाग़ में हूँ
धरा के किसी छोर में  नहीं
न ही रवि के प्रकाश में हूँ मैं
पूर्णिमा की रात में नहीं
अमावस की रात में हूँ मैं
निर्जीव सन्नाटे में नहीं
न सजीव बात में हूँ मैं
न ही राधा के रास में
न ही उमा के लास्य में हूँ मैं
पर इस जगत में कहीं न कहीं
किसी के लिए बहुत ख़ास हूँ मैं
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 13 जून 2018

खेलूं संग संग में

आज मैं तो उड़ती चलूँ मस्त पवन में
झूमूँ नाचूँ गाऊं मैं अपनी ही लगन में

जिया झूमे चुनरिया लहराए
सर से पल पल सरकती जाए
छू लूँ बादलों को मैं उड़के गगन में

मेरे संग संग चलती पुरवइया
मेरे गज़रे की लेके बलैया
मन मयूरा नाच उठा संग पवन में

ओढ़ूँ तारों की झिलमिल चुनरिया
चंदा देखे तो यूँ चमके बिजुरिया
आँख मिचौनी भी खेलूं संग संग में
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 12 जून 2018

वादियों में हो जाएँ ग़ुम

नदिया के पार चलो करलें बसेरा हम तुम 
ढूँढे हमें सारा जहाँ कहीं खो जाएँ हम तुम 

ठण्डा ठण्डा पानी यहाँ भँवरे  गुनगुनाते हैं 
फूल गुलिस्तां में तो सब खुशबु लुटाते हैं 
चलो यहीं खो जाएँ होश हो जाने दो ग़ुम 

मस्त मस्त मौसम है हवा मतवाली है 
दिल मेरा झूम रहा झूमे डाली डाली है 
कितना सुकूँ है यहाँ चलते रहें हम तुम 

न रुको तुम भी कहीं न रुकें हम भी कहीं 
बढ़ते रहें हम आगे न दिखे हद है कहीं 
दोनों थामें हाथों को वादियों में हो जाएँ ग़ुम 
@मीना गुलियानी 

ऐसा गुलिस्तां करदे

सबके दिलों में तू आज उजाला करदे
दूर दुनिया से नफरत का अँधेरा करदे

हर दिल में सदाकत की शमा रोशन हो
झूठ का शरारा भी हर दिल से दूर करदे

प्यार के फूल खिलें जिससे महके ये फ़िज़ा
न रहे दिल में नफरत के लिए बाकी जगह

न हो कोई दुश्मन न किसी से वैर यहाँ
हर तरफ अमन  का ही रहे नामोनिशां

सबके दामन को खुशियों के गुलों से भरदे
न कभी आये ख़िज़ा ऐसा गुलिस्तां करदे
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 11 जून 2018

गीतों की तान सुनाई

है  मौसम हँसता हँसता नहीं वक्त कभी भी रुकता
चलो सफर  पे बढ़े चलो ये रास्ता कभी न रुकता

मस्ती की बयार छाई तन मन की सुध है बिसारी
झूमे है हर इक पौधा  ,खिल गई हर इक क्यारी
सूरज की लाली छाई , हर कली कली मुस्काई
कोयल भी देखो है कूकी लगा बसंत ऋतु आई

बद्री भी देखो घिर आई चपला दामिनी चमकी
लेकर के नई चित्रकारी मीनाकारी है अंबर की
हंसों की टोली है आई गीतों की गूँजी शहनाई
अंबर ने अपनी मस्ती में गीतों की तान सुनाई
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 9 जून 2018

दिल मेरा दुआ करे

हर अरमान जिंदगी के तेरे हों पूरे
कोई भी सपने तेरे रहें न अधूरे

खुशियों का साया तुझ पर रहे मेहरबां
तुझको उस परवरदिगार की मिले पनाह

न हो कभी ख़ौफ़ कभी तुझे किसी का
 झोली मुरादों भरी बने आसरा किसी का

हर पल रहे जुनून तुझे दोस्ती का
रहे दूर तुझसे साया भी दुश्मनी का

खुदा का  हाथ हमेशा सिर पर तेरे रहे
तू सलामत रहे दिल मेरा दुआ करे
@मीना गुलियानी 

शुद्ध मन करो

भाग्य पाने के लिए
कुछ श्रम करो
लक्ष्य पाने के लिए
कुछ प्रण करो
ज्ञान पाने के लिए
भ्रमण करो
जीत पाने के लिए
पराक्रम करो
दीपक जलाने के लिए
शुद्ध मन करो
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 7 जून 2018

बह चले यह नयन निर्झर

आज फिर स्मृति तुम्हारी
क्यों सताती विकल होकर
उधर प्राची से उठे हैं
श्याम गहन संदेश लेकर
गए उठा पागल पपीहा
प्रणय के भूले फ़साने
बज उठे सुन मधुर रिमझिम
हृदय के कम्पित तराने
देख स्वनिल छवि तुम्हारी
बह चले यह नयन निर्झर
@मीना गुलियानी 

बुधवार, 6 जून 2018

इसमें प्राणों के पाश बँधे

यह बंधन ही मुझको प्रियकर
निष्कृति जीवन गति रुक जाना
प्रियतम के प्रियतम बन्धन में
सुख मिलता मुझको मनमाना
चिर बन्धन ही है अमर मुक्ति
जिसमें धरती आकाश बँधे
बन्धन ही प्रेरक है गति का
इसमें प्राणों के पाश बँधे
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 5 जून 2018

है हँस रहा गगन

जग हँस रहा है आज   -    है हँस रहा गगन
सुरभित समीर कहती कलियों से तुम खिलो
लहरों चली चलो सागर से तुम जा मिलो
जीवन का सुख यही अन्तर का मृदु मिलन

चितवन किसी की भोली मन में समा गई
आकाश गंग सी इक रेखा बना गई
सुधियों के साथ जागे आँखों के यह सपन
जग हँस रहा है आज   -    है हँस रहा गगन
@मीना गुलियानी

सोमवार, 4 जून 2018

तुम्हीं पर वारा करूँ

बन पागल  चातक सा प्रिय मैं
नित आनन चन्द्र निहारा करूँ
नित नैनन नीर नवोदित से
तुम्हारे पद पदम् पखारा करूँ
अपने हिय आज बसा तुमको
नित आरती मञ्जु उतारा करूँ
अपनापन लीन तुम्हीं में करूँ
सर्वस्व तुम्हीं पर वारा करूँ
@मीना गुलियानी 

शुक्रवार, 1 जून 2018

किश्ती मैं पार लगा जाऊँ

या रब ! ये कैसी मजबूरी
दो साथी आज बिछुड़ते हैं
उखड़ी उखड़ी सी सांसे हैं
दिल में अरमान तड़पते हैं

खामोश निगाहों से मांझी
है देख रहा किश्ती जाती
तूफ़ान उमड़ता जाता है
आवाज़ न हमदम की आती


हमदम मेरे आवाज़ तो दो
तूफानों से टकरा जाऊँ
मिटते मिटते भी बस तेरी
किश्ती मैं पार लगा जाऊँ
@मीना गुलियानी 

गुरुवार, 31 मई 2018

साहिल तक जाना मुश्किल है

जीने को जिए जाते हैं मगर
हर सांस का आना मुश्किल है
इक बोझ है सीने पर ऐसा
जिसको उठाना मुश्किल है

इक याद हे दिल में ऐसी कुछ
जिसको कि भुलाना मुश्किल है
इक चाह है ऐसी कुछ दिल में
जिसको कि गंवाना मुश्किल है

तूफ़ां के थपेड़ों में पड़कर अब
किश्ती का बचाना मुश्किल है
मौजों की रवानी में बहकर
साहिल तक जाना मुश्किल है
@मीना गुलियानी

बुधवार, 30 मई 2018

बिखरे सुर जो गाया

जिंदगी में इक मोड़ ऐसा भी आया
वादा किया रुकने का पर रुक न पाया

रेत सा वक्त हाथों से फिसलता गया
दीद को तरसते रहे मिला सिर्फ साया

पुकारते ही रह गए जुबां से न कह पाया
जहाँ तलक देखा ख़्वाब टूटता नज़र आया

जिंदगी के साज़ पर एक गीत सजाया
कसक दिल में उठी बिखरे सुर जो गाया
@मीना गुलियानी 

मंगलवार, 29 मई 2018

हर ग़म गले लगाते हैं

बुझते चिराग़ों को फिर जलाते हैं
उजड़े हुए ख़्वाबों को सजाते हैं

लम्हे जिंदगी के जो गुज़र भी गए
उनकी यादों में हम डूब जाते हैं

दर्दे दिल हमसे सहा नहीं जाता
दरिया अश्कों के हम बहाते हैं

खोए रहते हैं हम ख्यालों में
हम तो हर ग़म गले लगाते हैं
@मीना गुलियानी 

सोमवार, 28 मई 2018

चाँदनी भी लगी नाचने

ज्येष्ठ की दुपहरी में तपती है धरती
मीलों तक नज़र आए बंजर सी धरती
कैसे बनाओगे आशियाना रेतीली धरती
रेत का फैला समुन्द्र उठता बवण्डर
शूल बिखरे हर पथ पर तपती धरती
फिर इन्द्र का दिल भी देखकर डोला
भेजा बादलों को बनाने उर्वर धरती
बादल जो गरजे तो बरसी बदरिया
कुहुक उठी कोयल मोर झूमे गोरैया
खिल उठे कमल दल भरे पोखर तलैया
धरती फिर झूम उठी पहन पायल उठी
ओढ़ ली धानी चुनरिया गगरी छलक उठी
चंदा की चाँदनी, झिलमिलाती रात में
ले सितारों को संग , आई खुशियाँ बाँटने
लेके धरा को संग चाँदनी भी लगी नाचने
@मीना गुलियानी
ए -180 , जे डी ए  स्टाफ कालोनी
हल्दीघाटी मार्ग ,जगतपुरा
जयपुर -302017

रविवार, 27 मई 2018

अब तो मुझे अपनाओ

प्रभु जी मेरी विपदा आन मिटाओ

फँस गया मैं भंवरजाल में
सत्यपथ मुझे बतलाओ

रास्ता भूला पथ है अँधेरा
आप ही मार्ग दिखाओ

मुझसा न दुखियारा जग में
अब तो फन्द कटाओ

धीरज गया धर्म भी छूटा
आफत आन मिटाओ

शरण आया हूँ मैं आपकी
अब तो मुझे अपनाओ
@मीना गुलियानी 

शनिवार, 26 मई 2018

फिर मिट जाए आवागमन

हे मेरे मन  उतावला मत बन
तज दे चंचलता उच्छृंखलता
भूल जा अपनी तू चतुराई
ले ले अब प्रभु की शरण
जग में वो ही तारनहारा
तनिक तो करले  चिन्तन
घाट  घाट का पानी देखा
मिटी नहीं तृष्णा की रेखा
जग है मिथ्या काहे डोले
वृथा है तेरा ये भ्रमण
वो ही पाले वो ही सम्भाले
करदे जीवन उसके  हवाले
फिर मिट जाए आवागमन
@मीना गुलियानी

हादसा टल गया था

रेल की पटरियों के बीचों बीच
कोई अपनी धुन में जा रहा था
कानों में हैडफोन लगाए हुए था
गाने वो सुनता चला जा रहा था
इतने में गाड़ी ने सीटी बजाई
पर उसके दोनों ही कान बंद थे
फिर भला उसे सुनाई कैसे देता
न ही जान की परवाह थी उसको
लगता था जैसे कोई दीवाना
या किसी शमा का परवाना
रेल की पटरियों पर इंजन
धड़धड़ाता समीप आ रहा था
पटरियाँ भी थर्राने लगी थीं
वो  दीवाना मौत को दावत
दिए चला ही जा रहा था
अकस्मात मैंने उसे पटरी से
 दूर धकेला वो पटरी पार गिरा
गाड़ी धड़धड़ाती हुई निकल गई
मैंने भी चैन की साँस ली और
ईश्वर को धन्यवाद किया वो
भयानक हादसा टल गया था
@मीना गुलियानी


गुरुवार, 24 मई 2018

निंदिया से ख़्वाब तुम्हारे

उतरी फ़लक से पानी की बूँदें
लगा जैसे टकराईं हैं वो तुमसे
उनकी खनक से लगा है ऐसे
बजी हो तेरी पायल कहीं से
बिखरी गगन में प्यारी चाँदनी
फ़िज़ा भी देखो कितनी खिली
लगता चुराई है रोशनी उसने
चुपके चोरी तेरी बिंदिया से
दिलकश नज़ारे कितने प्यारे
चुराए निंदिया से ख़्वाब तुम्हारे
@मीना गुलियानी