करो नित नाम का सुमिरन अगर मुक्ति को पाना है -
अरे पगले ये वो घर है जो इक दिन छोड़ जाना है
अवस्था जा रही तेरी बना ले नाम सुमिरण से
वो खर्ची साथ ले अपने वहाँ पर पहुँच जाना है
किया नहीं कर्म शुभ तूने दिया नहीं दान हाथों से
जिव्हा से न किया सुमिरण तेरा किस जगह ठिकाना है
तेरा दमदम में दम जाता तुझे कुछ नज़र नहीं आता
तेरी करतूत का पर्चा तेरे दर पे भी आना है
जो रिश्तेदार हैं तेरे जिन्हें तुझसे ये उल्फत है
तेरे इस जिस्म को अग्नि पर रखके फिर जलाना है
@मीना गुलियानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें