कबीर जी का भजन
क्या तन माँजता रे , इक दिन माटी में मिल जाना
जब तक तेल दिए में बाती जगमग जगमग होये
बीता तेल निपट गई बाती ले चल ले चल होये -----------
छेलो बनकर फिरे जगत में धर पगड़ी में फूल
कालबली का लगे तमाचा जाए चौकड़ी भूल ---------------
हाड जले जस लाकड़ी रे केस जले जस घासा रे
सोने जैसी काया जल गई कोई न आवे पासा ---------------
घर की तिरया झुर झुर रोवे बिछुड़ गई मेरी जोड़ी रे
कहत कबीर सुनो भई साधो जिस जोड़ी तिस तोड़ी -----
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