यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 17 सितंबर 2020

कबीर जी का भजन


                    कबीर जी का भजन 

क्या तन माँजता रे , इक दिन माटी में मिल जाना 

जब तक तेल दिए में बाती जगमग जगमग होये 

बीता तेल निपट गई बाती ले चल ले चल होये -----------


छेलो बनकर फिरे  जगत में धर पगड़ी में फूल 

कालबली का लगे तमाचा जाए चौकड़ी भूल ---------------


हाड जले जस लाकड़ी रे केस जले जस घासा रे 

सोने जैसी काया जल गई कोई न आवे पासा ---------------


 घर की तिरया  झुर झुर रोवे बिछुड़ गई मेरी जोड़ी रे 

कहत कबीर सुनो भई साधो जिस जोड़ी तिस तोड़ी -----


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें