रे मन अब तो चेत रे - बिरथा जन्म न जाए
काहे को तूने महल बनाया
चार दिनों का देस रे-------- - बिरथा जन्म न जाए
कौड़ी कौड़ी माया जोड़ी
कपट का धरकर भेस रे --- बिरथा जन्म न जाए
रैन दिवस तूने यूँ ही गँवायो
भूल गया निज भेस रे बिरथा जन्म न जाए
चेत सके तो चेत रे बंदे
क्या होवे चुग जाए खेत रे बिरथा जन्म न जाए
हाड़ मांस की काय टोरी
प्रीति कीन्ही किस हेत रे बिरथा जन्म न जाए
अब रोने से क्या होवेगा
कल ने पास दिया फैंक रे बिरथा जन्म न जाए
चार कहार तुझे लेने आये
छोड़ चला परदेस रे बिरथा जन्म न जाए
@मीना गुलियानी
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