यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 1 सितंबर 2020

दो घड़ी



दो घड़ी के लिए तुम रुक जाओ 

कुछ अपनी कहो कुछ मेरी सुनो 

हर बात की इन्तहा होती है 

दिल मेरे को न यूँ बहकाओ

 @मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें