(कबीर जी के भजन )
मोरे सतगुरु हैं जी रंगरेज़ चुनर मोरी रंग डारी
शाही रंग छुडाके दिया मँझीठा रंग
धोबी से छूटे नहीं दिन दिन होत सुरंग ---------
भाव के कुंड नेह के जल में प्रेम रंग दई बोर
चस्के चास लगाई के रे खूब रंगी रे झकजोर -------
सतगुरु ने चुनरी रंगी रे सतगुरु चतुर सुजान
सब कुछ उन पर वार दूँ मैं तन मन और ये प्राण ------
सतगुरु की महिम अनन्त अनन्त किया उपकार
लोचन अनन्त उघाड़या अनंत दिखावण हार ----------
कहे कबीर रंगरेज़ गुरूजी मुझपे हुए दयाल
शीतल चुनरी ओढ़के मैं मगन भई हो निहाल ----------
@मीना गुलियानी
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