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सोमवार, 8 जून 2015

माता की भेंट - 138



दुर्गा भवानी जी दा सोहणा दरबार है 
लगी गुलज़ार है जी लगी गुलज़ार है 

लाल लाल चोला शीश छत्तर अनूप है 
जोत जगे मइया जी दी सुंदर सरूप है 
ब्रह्मा वेद पढ़े अर्जुन बना सेवादार है 

इक मन होक जेह्डा दर्शन पा गया 
प्रेम नाल श्रद्धा दी भेंट चढ़ा गया 
पूर्ण मनोरथ कर बेडा ओदा पार है 

भगत जै जै बोलदे ने लीला कैसी हो रही 
माता जी चरण च संगत खलो रही 
दर्शन दिखा माता तेरा इंतज़ार है 

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