दुर्गा भवानी जी दा सोहणा दरबार है
लगी गुलज़ार है जी लगी गुलज़ार है
लाल लाल चोला शीश छत्तर अनूप है
जोत जगे मइया जी दी सुंदर सरूप है
ब्रह्मा वेद पढ़े अर्जुन बना सेवादार है
इक मन होक जेह्डा दर्शन पा गया
प्रेम नाल श्रद्धा दी भेंट चढ़ा गया
पूर्ण मनोरथ कर बेडा ओदा पार है
भगत जै जै बोलदे ने लीला कैसी हो रही
माता जी चरण च संगत खलो रही
दर्शन दिखा माता तेरा इंतज़ार है
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