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सोमवार, 1 जून 2015

माता की भेंट - 55

तर्ज ------जोत से जोत 

गीत भवानी के गाते रहो ,चरणो में सिर को झुकाते रहो 
छोड़ के जग की मोह ममता , माँ की शरण में जाते रहो 

वो ही माँ है पालनवाली ,  नव जीवन की दाता 
उसका ऋण है सबसे ऊँचा , सबसे ऊपर जाता 
उसकी ज्योति जलाते रहो 

वो ही सुख को देने वाली , पाप निवारण वाली ,
दुष्ट का नाम खपाने  वाली , भक्त उभारण वाली 
उसकी लगन को लगाते रहो 

जो कोई उसकी जोत जलाता , चौरासी कट जाती ,
छोड़के फंदे पहुंच जाता , अपनी जो है दाती 
नेह उसी से लगाते रहो 

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