जोड़ जोड़ भर लिए खज़ाने अब भी तृष्णा अड़ी रही
धरे रहे तेरे रंगले बंगले खाली बारादरी रही
एक ब्राह्ण की सुनो कहानी पूजा करने आया था
नहाय धोए कर नदी किनारे आसन खूब जमाया था
आ गया यम का परवाना बस हाथ में माला पड़ी रही
पहन पोशाक बांधकर पगड़ी गदी पर इक सेठ गया
जाते ही इक चक़्कर आया पाँव फैलाकर लेट गया
कूच कर गया लिखने वाला कलम कान में पड़ी रही
कोठे ऊपर एक नवेली चढ़ी सिंगार बनाने को
भरी सलाई सुरमे वाली सुरमा आँख लगाने को
काल गुलेल लगी पीछे से सुरमेदानी धरी रही
सैर करने को एक बाबूजी गाडी में असवार हुए
गाड़ी अभी चलने न पाई बाबू ठंडे ठार हुए
लगा तमाचा मौत का सड़क पे टमटम खड़ी रही
@मीना गुलियानी
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