महज पेबंद है ये बादल अब
टूट गया है अँधेरे का तिलस्म
ये आसमान भी फ़टी हुई चादर है
सितारों से झांकता है रोशनी का जिस्म
कविताएँ मेरी वायदा भर है दर्द का
हर अक्षर लिखता आँसुओं की इबारत
कैसे न हो गम मुझे उम्र गंवाने का
जिसकी मुझे तलाश थी वो लम्हा न मिला
@मीना गुलियानी
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