इंद्रधनुष को यदि आँखे देख पाती
तो हर रंग सच्चा हो जाता
सपने भी एक ऐसा सच है जिसे
बीतने पर जिया जाता है
जागने पर तो हर आदमी अपनी
ख्वाहिश जाहिर करते और पूरी करते
खामोशी भी जब टूटकर बिखरती है
उसमे से भी संगीत की धुन निकलती है
जिसे हम धड़कनो की धुन पर गुनगुनाते है
फूलों की खुशबु भी बेफिक्र होकर नचाती है
दिए की रोशनी हमें परछाईयो में बांधती है
किरणें हमें अंधेरों की बाहों में लुभाती है
@मीना गुलियानी
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