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गुरुवार, 9 जून 2016

सपनों के रंग


इंद्रधनुष को यदि आँखे देख पाती 
तो हर रंग सच्चा हो जाता 
सपने भी एक ऐसा सच है जिसे 
बीतने पर जिया जाता है 
जागने पर तो हर आदमी अपनी 
ख्वाहिश जाहिर करते और पूरी करते 
खामोशी भी जब टूटकर बिखरती है 
उसमे से भी संगीत की धुन निकलती है 
जिसे हम धड़कनो की धुन पर गुनगुनाते है 
फूलों की खुशबु भी बेफिक्र होकर नचाती है 
दिए की रोशनी हमें परछाईयो में बांधती है 
किरणें हमें अंधेरों की बाहों में लुभाती है 
@मीना गुलियानी 

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