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रविवार, 5 जून 2016

हम किधर जाएँ

मेरी तन्हाई और तेरा तसव्वुर है
हमने सोचा कि हम किधर जाएँ

जाने तू कब यहाँ से गुज़री थी
तेरी महक फिज़ाओ में बाकी है

इन गुलिस्ताँ के फूलों में भी
तेरे चहकने की आवाज़ आती है

खो गए यहीं कहीं तेरे पाँव के निशाँ
वक्त से कहदो ज़रा यहीं ठहर जाएँ
@मीना गुलियानी 

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