रात तो अथाह अंधियारा है
सुबह की किरणो से है जीवंतता
तुम्हारे चेहरे पर शान्ति ऐसी है लगती
मानो आँखों में गरजती हो मौन क्रान्ति
वो क्षण जो स्वछन्द प्रणय का था प्रतीक
वो एक भ्रम बना हो गया स्वयं ही ओझल
तुम महज एक बदन ही नहीं
एक एहसास भी हो निश्छल
@मीना गुलियानी
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