ये आँखे रोज़ तुम्हारी यादों का मेला सजाती है
हवाएँ भी रोज़ तुम्हारी खुशबु साथ लेके आती है
तुम्हारी आँखों की नमी रिसकर
मेरी आँखों में उतर आती है
तुम्हारी अंगुलियाँ बिखेरती बालों को
गुज़री यादो को पिघला जाती है
तमाम वजूद सिमट जाता है
मेरी संवेदनाओं का आँखों में
बैठो जब तुम मेरे सिरहाने
तन्हाई ख्यालों में सिमट जाती है
@मीना गुलियानी
हवाएँ भी रोज़ तुम्हारी खुशबु साथ लेके आती है
तुम्हारी आँखों की नमी रिसकर
मेरी आँखों में उतर आती है
तुम्हारी अंगुलियाँ बिखेरती बालों को
गुज़री यादो को पिघला जाती है
तमाम वजूद सिमट जाता है
मेरी संवेदनाओं का आँखों में
बैठो जब तुम मेरे सिरहाने
तन्हाई ख्यालों में सिमट जाती है
@मीना गुलियानी
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