जब जिंदगी में आँख खुली
पिता को मैंने पास पाया
एक धुंधला सा चेहरा वो
फिर मुझे है याद आया
उठाया जब गोद में उसने
पहली वो पहचान हुई
फिर अंगुली पकड़कर चलना सिखाया
मेरी नन्ही जान के लिए
बने वो भगवान समान
निश्चिन्तता थी मन के भीतर
मीठी बयार थी बहती
दिनचर्या को मस्ती से जीना सिखाया
अब किसी पगडण्डी पर पैर नहीं कांपते
ऊबड़ खाबड़ ज़मीन पर कदम नहीं लड़खड़ाते
लफ्ज़ नहीं कांपते ,मन नहीं घबराता
ऐसा मुझे जीना सिखाया
कोई चाहत अधूरी नहीं मन में
ऐसा निर्मल ज्ञान कराया
पिता बने मेरे लिए बरगद की छाया
@मीना गुलियानी
बहुत ही सुन्दर नज्म
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर नज्म
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएं