यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, 14 जून 2016

मेरा खुदा मिल गया

मै तो घर से अकेला चल पड़ा
रास्ते में ये फूल मिल गए
पूछा उन्होंने तुम गुमसुम क्यों हो
मै पल भर चौंका फिर मुस्कुरा  दिया
अब तो लगा जैसे वीराने में बहार आ गई
हर कली जाग उठी मुस्काने लगी
गुलशन लहलहाने लगा खुशबु लुटाने लगा
क्योकि तुम दबे पाँव वहाँ चली आई थी
क्या यह सब मेरी आँखों का धोखा है
क्या यह एक दिवास्वप्न है या सत्य है
तुम्हारी ख़ुशी, हँसी देखने की तमन्ना लिए
बरसों से इस वादी में बार बार लोटता हूँ
यहाँ कभी हम दोनों मुस्कुराए थे
प्यार के नग्मे भी गुनगुनाए थे
तुम्हारी पदचाप पायल की छमछम
अभी तक मेरे कानो में गूंजती है
यथार्थ है स्वप्नमात्र तुम ही हो
तुम्हे पाकर तुम्हे सपर्श करने की
तुमसे बाते करने की इच्छा होती है
मेरा रूठा हुआ प्यार मुझे मिल गया
ऐसा मुझे लगा जैसे मेरा खुदा मिल गया
@मीना गुलियानी 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें