तुमने कभी रात की तन्हाई का दर्द बांटा है
कभी उसकी स्याह खामोशी से बातें की है
मैने देखे है उसके सीने के जख्म
उसकी आहों से उठता हुआ धुँआ
सुनी है उसकी सिसकियाँ तल्खियाँ और तड़प
उसकी आँखों का गम बूँद बनके रिसता है
उसके सीने की आंच में तपकर
नित नया चाँद भी पिघलता है
@मीना गुलियानी
कभी उसकी स्याह खामोशी से बातें की है
मैने देखे है उसके सीने के जख्म
उसकी आहों से उठता हुआ धुँआ
सुनी है उसकी सिसकियाँ तल्खियाँ और तड़प
उसकी आँखों का गम बूँद बनके रिसता है
उसके सीने की आंच में तपकर
नित नया चाँद भी पिघलता है
@मीना गुलियानी
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