सुख चाहे यदि न्र जीवन का जपले प्रभु नाम प्रमाद न कर
है वही सिमरने योग्य सदा तू और किसी को याद न कर
अस्थिर है जग के ठाठ सभी यदि बिछुड़ गए अचरज ही क्या
हो लोभ मोह के वशीभूत सिर धुनकर शोक विषाद न कर
धन माल बटोर चाहे जितना पर इतना ध्यान हमेशा रहे
अपना घर बार बसाने को औरों का घर बर्बाद न कर
पर निंदा को तजकर तू आदर्श बना निज जीवन को
सद्ज्ञान प्राप्त कर सज्जन से दुर्जन से व्यर्थ विवाद न कर
@मीना गुलियानी
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