पहुँचे जमुना के तट पर
उठ पड़ी लहर मदमाती
शशि मुख का अवलोकन कर
थी अपने में न समाती
जमुना संग लहरों के
लेती थी मधुर बलैयां
अनुराग भरी बलखाती
छूने को प्रभु की पइयां
मनमोहन ने मुस्काकर
निज चरण कमल लटकाया
जग गए भाग जमुना के
छूकर जीवन सुख पाया
जमुना ने निज उर अंतर
खोला पृथ्वी के पथ का
युग ओर कोर थे जल के
वसु बढ़े बीच ले नटवर
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