ये बादल गरजता है
बरसता क्यों नहीँ
चक्कर काटता रहता है
शोर मचाता है
सिर पर हथौडे सा वार करता है
दिल चीत्कार कर उठता है
ये शोर अब सहा नहीँ जाता
बादल की ही मर्ज़ी क्यों चले
मै भी क्यों प्यासे पेड़ की तरह जिऊँ
क्यों न पानी खींच लूँ
अपनी जड़ों द्वारा पाताल से
क्यों न ताकत मांग लूँ उससे
जो सबको ताकत देता है
फिर क्यों मै मोहताज़ रहूँ
उस बादल की
करलूँ मनमर्ज़ी
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