जिसके म्रृदु बनो,नैनो से और सरल चित्त ओ सैनो से
मैने तो उसकी तड़पन में जज़्बात तड़पते देखे है
वेदना विकल जिसकी बनकर
अब धुँआ उगलती आँगन में
उसकी उन उलझी अलकों से
मैने घनश्याम बरसते देखे है
जो चकवी अपने चकवे से
बिछुड़ी अपनी मजबूरी में
उसकी उन भूली यादो में
मैने तो फूल बरसते देखे है
तुम छिपा न पाओगी मुझसे
अब अपने मन की चाहत को
तव सूनी सूनी चितवन में
मैने तो निज चित्र उभरते देखे है
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