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सोमवार, 15 फ़रवरी 2016

दिल में उठी हिलोर



नदी जाती सागर की ओर 
सरिता ढूंढ रही हे छोर 
कविता जाती शब्द की ओर 

                धरती घूमे सूरज के चँहुओर 
                मेरे प्यार को सूझे न ठोर 
                आहें मेरी बड़ी है पुरज़ोर 

दिल बावरा घूमे इस ओर उस ओर 
अंतर्मन में मच रहा है शोर 
दिल की लहरों में उठी हिलोर 

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