यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016

राही मै चलता रहूँगा

राही मै चलता रहूँगा 
धूप  हो या छाँव में 


त्याग है धारा बनी 
मेरे जीवन के पथ की 
पथ में चाहे शूल हों 
न ये रुक सकेगी 
दीप बन जलता रहूँगा 
आंधियों के गाँव में 


विजय की बनके पताका 
पथ पे मै बढ़ता रहूँगा 
देशहित प्राणों को भी 
अपने समर्पित मै करूँगा 
ज्योत्स्ना फैलाऊंगा शिक्षा की 
मै हर इक गाँव में 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें