वो धीरे धीरे सर्द हवा में टहल रही थी
लैम्प पोस्ट के नीचे बैंच पड़ी थी
वहाँ एक पुस्तक अधखुली पड़ी थी
मैने उस पुस्तक को छुआ
उसकी पलकें मेरी ओर उठीं
मैने रात्रि के अँधेरे में
उसके मन की इबारत को पढ़ा
वो मन ही मन डरी हुई
सहमी सी थी
वो संकुचित सी हुई
निश्चेष्ट सी, निष्प्राण सी उसकी देह
सर्द हवा में पत्ते सी कांप रही थी
मैने उसे कंबल ओढ़ाया
उसकी प्रतिछाया मुझे घूरने लगी
मन ही मन मै घबराया सकुचाया
चुपचाप वापिस चला आया
अब केवल वहाँ सन्नाटा पसरा हुआ था
नि ;शब्द निष्कलंक कोई झाँक रहा था
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