ओ मेरे चंचल मन, तू मत कर पागलपन
कुछ देर ज़रा ठहर जा यूँ बावला मत बन
पुरवाई को बहने दे
हवाओ को महकने दे
परिंदों को चहकने दे
मिटा मन की ये भटकन
मन को अब धीर बंधा तू
मत उलझन और बढ़ा तू
दिल की परवाज़ बढ़ा तू
सुलझ जायेगी हर उलझन
कुछ देर ज़रा ठहर जा यूँ बावला मत बन
पुरवाई को बहने दे
हवाओ को महकने दे
परिंदों को चहकने दे
मिटा मन की ये भटकन
मन को अब धीर बंधा तू
मत उलझन और बढ़ा तू
दिल की परवाज़ बढ़ा तू
सुलझ जायेगी हर उलझन
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें