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रविवार, 21 फ़रवरी 2016

दीप जलता रहेगा




दीप जो उसने जलाया , दीप वो जलता रहेगा 
जो कि बढ़के जिंदगी में है शमा को चूम लेते 
जो मरण को वरण करके है प्रलय में झूम लेते 
जो हिमालय से अटल है आन पर झुकते नहीं 
जो कदम तलवार की भी धार पर रुकते नहीं 
उस चरण की हर ठहर पर नित नया मंदिर बनेगा 

दीप जिसकी लौ लिए इन्सानियत की रोशनी 
दीप जिसकी हर किरण मज़लूम की ताकत बनी 
पा जिसे यह युग जगा फिर से जवानी आ गई 
उतुंग शिखरों से कि जिसने मुक्ति को आवाज़ दी 
सुन सको तो आज भी वह स्वर तुम्हें मिलता रहेगा 

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