प्राणों में विकल कम्पन
कम्पन में निराशा
नयनों में सजग सपने
सपनों में पिपासा
इक महफ़िल लो आबाद हुई
इक बज्मे मुहब्बत लुटती है
देकर के उजाला औरों को
इक शमा अचानक बुझती है
हमदम मेरे आवाज़ तो दो
तूफानों से टकरा जाऊँ
मिटते मिटते भी बस तेरी
किश्ती को पार लगा जाऊँ
यूँ ही बैठे रहो तुम मेरे आस पास
डर है तू दिल से उतर न जाए कहीं
प्यास मुझे थी लगी हुई
पानी उसने पिया
लगा मेरी प्यास बुझ गई
क्या यही होती है सच्ची लगन
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