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सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

चिड़िया और सैयाद



सन्नाटा सा है छाया हुआ 
जो कभी दूर न होगा 
न कभी महसूस होगा 
चिड़िया का चहकना क्या हुआ 

इस डाल पर रहती थी इक चिड़िया 
उड़ती फिरती रहती थी जो गगन में 
पिंजरे में कैद कर लिया सैयाद ने 
पंख भी काट दिए उसकी लगन ने 

मन हल्का कर लेती थी जो बोलकर 
 जमाने की नज़र में लगता था बेहुनर 
अब न उठाएगी अपनी पलकों को 
पी जायेगी ज़माने का सारा वो ज़हर 

न इससे कभी पूछना किसकी लागी  नज़र 
जुबां पर न  लाएगी  वो न शिकवा करेगी 
न बताएगी वो किसी को कभी अपनी खबर 
पहले भी कभी न थी उसे अपनी  फ़िक्र 

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