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शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

बेवफ़ाई का मंज़र



आज तेरी बेवफाई का वो मंज़र याद मुझको आ गया 
आंसुओ का और गम का सिलसिला याद आ गया 

                   शाम के ढलते ही लौटकर दौड़े आते थे मेरे सामने 
                   अब वो  ढलती शामों का मंज़र सामने फिर आ गया 

पहले फूल भी खिलते थे तेरा मुखड़ा देखकर 
अब दिलों के दरम्यां का फासला याद आ गया 

                  किस गम को याद करूँ और किसे भूल जाऊं मै 
                  एक को भूलूँ तो दूसरा गम पास मेरे आ गया 

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