आंसुओ का और गम का सिलसिला याद आ गया
शाम के ढलते ही लौटकर दौड़े आते थे मेरे सामने
अब वो ढलती शामों का मंज़र सामने फिर आ गया
पहले फूल भी खिलते थे तेरा मुखड़ा देखकर
अब दिलों के दरम्यां का फासला याद आ गया
किस गम को याद करूँ और किसे भूल जाऊं मै
एक को भूलूँ तो दूसरा गम पास मेरे आ गया
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें