यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

किसको मीत बनाएँ



जग की इस नश्वरता में 
किसको बोलो मीत बनाएँ 

                लहरों सी अभिलाषाएँ यह 
                क्या क्या रंग दिखाती 

उठती गिरती बढ़ती जाती 
तट अवलोक न पाती 

                पानी के बुदबुद से अपने 
                 सतरंगी बन आते 

बालू के कितने निकेत वे 
झंझा में भर पाते 

             सुख दुःख की इस धूप छाँव में 
             अमर गान क्या गाएँ 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें