किसको बोलो मीत बनाएँ
लहरों सी अभिलाषाएँ यह
क्या क्या रंग दिखाती
उठती गिरती बढ़ती जाती
तट अवलोक न पाती
पानी के बुदबुद से अपने
सतरंगी बन आते
बालू के कितने निकेत वे
झंझा में भर पाते
सुख दुःख की इस धूप छाँव में
अमर गान क्या गाएँ
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