धूप में छाया घिरती है
हृदय में निराशा भरती है
गवाक्षों में रौशनी नहीँ हुई
गलियारे भी सुनसान है
कलियाँ भी वसन्त के न आने से मुरझाई
चिड़ियाँ भी स्पन्दन कम होने से अकुलाई
हो सकता है उसे घेर लिया हो
या किसी भूलभुलैया में फँसा हो
वचन देकर भी वसन्त नहीँ आया
कलियाँ फिर भी प्रतीक्षारत है
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