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रविवार, 14 फ़रवरी 2016

कलियाँ प्रतीक्षारत है



धूप में छाया घिरती है 
हृदय में निराशा भरती  है 

                   गवाक्षों में रौशनी नहीँ हुई 
                   गलियारे भी सुनसान है 

कलियाँ भी वसन्त के न आने से मुरझाई 
चिड़ियाँ भी स्पन्दन कम होने से अकुलाई 

                 हो सकता है उसे घेर लिया हो 
                 या किसी भूलभुलैया में फँसा हो 

वचन देकर भी वसन्त नहीँ आया 
कलियाँ फिर भी प्रतीक्षारत है 

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