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गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

खोया बचपन




हाय विधाता ने क्यों रचा मुझको
जिंदगी तो दी जिन्दा न रखा मुझको 
जिल्ल्त की है जिंदगी 
दूसरों के टुकड़ो ने पाला मुझको 

                  कभी किसी ने कभी किसी ने 
                  हर शख्स ने ठुकराया मुझको 
                  जन्म तो दिया माँ बाप ने 
                  पर मरने को छोड़ा मुझको 

दो 'ठीकरी' मिली उसे बजाया बसों में 
कभी 'पेटी ' मिली तो गाय बसों में 
इस बस से उत्तर किसी और पे चढ़ 
बस यही कमाने का सहारा मिला मुझको 

                 कोई देता अठन्नी तो कोई तरस खाकर रुपया 
                 कोई देता ताना तो कोई बनाता बहाना 
                  पढ़ना दूर, प्यार दूर, ख़ुशी दूर, बचपन दूर 
                  हाय इस वैरी  दुनिया ने लूट लिया मुझको
@मीना गुलियानी
ए  -180  जे डी ए  स्टाफ कालोनी
हल्दीघाटी मार्ग ,जगतपुरा
जयपुर -302017 

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