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गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

विधाता ने रचा




विधाता ने रचा है
उसे प्रेम से 
कल्पना से 
कामना से 
फुर्सत में 
वह मुझमे है 
उसकी हँसी 
कुसुमित होती है 
पलाश में ,अमलतास में 
हेमंत में ,वसंत में 
बढ़ती जाती है 
अगाध की ओऱ 

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