उसका नैसर्गिक सौंदर्य
उद्दीप्त था दीपशिखा समान
सूर्य की प्रथम किरण नें
उसकी कोंपल को स्पर्श किया
फिर वो फूल मुस्कुरा उठा
उसने धीरे धीरे पंखुड़ी को खोला
सकुचाते हुए अंगड़ाई ली
उस पर गिरी ओस की बून्द
अपना अस्तित्व खोने लगी
सूर्य की आभा फैल गई
किरणों के सौंदर्य से
फूल ने स्नान किया
अब वह प्रफुल्लित होकर झूमने लगा
वह पूर्ण परिपक्व हो गया था
पराग से भरा , मकरन्द भार से झुका
भंवरे आस-पास मंडराने लगे
पक्षी चहचहाने लगे
यह वसन्तऋतु का आगमन था
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