यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2016

मुखौटा



कलियाँ है गुलशन और फूल भी 
माली भी क्या करे, कब तक सींचे 
बंद होने को है उसकी सांसे आवाज़ भी 

पत्थर से बना है ,हर दीवार रंगीन है 
इसमें रहने वालों की जिंदगी संगीन है 
जो होना है वो तो होगा एक दिन 
पर काटे नहीँ कटता हर लम्हा हर दिन 

दिखने में महल बना हुआ है 
नींव कहाँ है ?  किस पर खड़ा है ?
दूसरा देखता है बाहरी मुस्कुराहट 
नहीं दिखती भयभीत मन की भनभनाहट 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें