आज शाम है उदास उदास
वीरान सी चुपचाप
फ़िज़ा भी है गुमसुम
हवा भी है मद्धम मद्धम
धीमे धीमे पायल के सुर
बजते है यूँ छम छम
पलकों की छाँव के नीचे
घनी जुल्फ में अखियाँ मीचे
सोच रहा है कोई दीवाना
काश जो होता मै परवाना
रहता सदा शमा के पास
फिर क्यों रहता मै उदास
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें