वही शामे ग़म की तन्हाई
तन्हाई में क्यों है रुसवाई
रुसवाई में जां पर बन आई
या रब कैसी तकदीर बनाई
माटी का तूने पुतला बनाया
उसमें काहे दिल को लगाया
दिल में तूने प्रीत जगाके
फिर काहे दे दी जुदाई
सपनो का इक महल बनाया
प्यार से हमने इसको सजाया
इस ज़ालिम दुनिया वालों ने
अपने पाँव से ठोकर लगाई
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें