आई बरखा बहार खिली हर कली कली
झूमी मस्त पवन उडी महक गली गली
कोयल की कुहू कुहू
पपीहे की पीहू पीहू
टेर सुनने में लागे भली
वर्षो से कुम्लहाया यौवन
हुआ हरा भरा तन मन
धुन में अपनी मस्त नार चली
फ़ूलों के पत्तों पर ओस की बूँद
लगी जो कोपलों को चूमने
शर्मो -ह्या से झुक गई कली
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