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मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

मोहभंग होना



झंझा के प्रबल झकोरे
 चपला थी चमक दिखाती
 कण कण में इक सिहरन थी
नीरवता थी थर्राती

                ओले की उस वर्षा में
                प्रेमी थे बढ़ते जाते
                उर भाग रहा था आगे
                पग पीछे थे पड़ जाते

कमनीय कान्त किरणों से
थे अंग अंग उत्तेजित
पर इधर प्रकृति थी रचती
बाधाओं की नव संसृति

               अधरों में आसव भरकर
              सोती थी यौवन बाला
              अलसाए से नयनों में
              थी छलक रही मृदु हाला

सपनों की माला टूटी
टूटी रजनी नीरवता
भोगी के हृदय गगन में
योगी का योग विकसता              

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