यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

दो घड़ी पास बैठो



दो घड़ी तुम  पास बैठो
बस ज़रा मै प्यार कर लूँ
तेरे इन नाज़ुक लबों के
रस ज़रा स्वीकार कर लूँ

                हाय खिलता रूप तेरा
                हो रहा जैसे सवेरा
                फूल सी मुस्कान दे दो
                जिस पे मै अधिकार कर लूँ

इस तरह आना तुम्हारा
रूठकर जाना तुम्हारा
भूल मेरी है यदि तो
मै तेरी मनुहार कर लूँ

              जब ठिकाना है न पल का
              फिर भरोसा केसा कल का
              आओ जी भर कर तुम्हारा
             आज मै सत्कार कर लूँ 

2 टिप्‍पणियां: