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शनिवार, 12 मार्च 2016

स्वयंभू थे वो सृजनहार


हे मौन तपस्यालीन यति
              पल भर तो करो दृग उन्मेष
बोली इक चंचल रमणी
              खोले तब उसने नयन द्वार
देखा उस कमनीय रमणी  को
              करदी तपस्या भंग जिसने
यति उठा उसे श्रापित करने
               पर तत्क्षण ही हृदयपटल पर
हो गई उसकी छवि अंकित
              परिदृश्य हुआ परिवर्तित
याद आया अतीत वृतान्त उसे
              थी पूर्व जन्म की सहधर्मिणी
अब न रही वो मृगछाला
              न रहे कंठ में सर्पहार
कैलाश में विचरण करने लगे
             स्वयंभू थे वो सृजनहार
    @  मीना गुलियानी

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