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मंगलवार, 8 मार्च 2016

कौन हो तुम


कौन हो तुम मेरी मन वीणा की तारों को छेड़ दिया
किसने मेरे सोये हुए अरमानों को फिर से छेड़ दिया

                   मेरे उर में प्राण फूंककर कर दिया इसे पुन :जीवन्त
                   पीड़ा हरके हृदय की तुमने टूटी तारों को जोड़ दिया

हृदय झंकृत होने लगा अंगुलियों से कम्पित स्वर निकले
तुमने मधुर आलाप लिया और मन वीणा को छेड़ दिया

                      जीवन है क्षण -भंगुर जब जाना तबसे अब जागा
                      तुमने आकर मन की सोई रागिनी को छेड़ दिया

अमर गान फिर होने लगा और वेदना के सुर निकले
दिल के अरमां जगते गए मृदु तान को तुमने छेड़ दिया


@मीना गुलियानी 

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