सखी री कैसे मै धीर बंधाऊँ
कैसे अपनी हर उलझन को
मन ही मन सुलझाऊँ
कैसे हरलूँ हर वो पीड़ा
दिल को जिससे दर्द मिला
टीस उठी जो सीने में तो
कैसे मेरा खून जला
सखी री कैसे मै मुस्काऊँ
मेघ उमड़ आते है जब भी
रोता क्यों दिल आज मेरा
याद आई वो बरसातें फिर
सावन सूखा आज मेरा
सखी री क्यों मै नीर बहाऊँ
धरती अंबर आज तलक भी
क्यों नही मिल पाते है
दरम्याँ के फांसले भी
क्यों नहीं मिट पाते है
सखी री मन ही मन अकुलाऊँ
@मीना गुलियानी
Beautiful
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