फुरकत का कुछ आलम ऐसा है
खुद को भी बेगाने लगते है
तन्हाई से घबरा जाते है
परछाईं से खुद की डरते है
मंजिल की तमन्ना में भटके
काँटो से गुज़रते आये है
अब पाँव के छाले भी रिसते
हर गाम पे उठते गिरते है
रुसवाइयों के डरकर तो हमने
चेहरे पे नकाब भी पहनी मगर
ये शहरे वफ़ा के लोग हमें
हर मोड़ पे घूरा करते है
ऐ काश कोई हमदम होता
जख्मों को मेरे सहला देता
बेदर्द ये दुनिया वाले तो
हर जख्म कुरेदा करते है
बाहों का तुम्हारी गर मुझको
दम भर जो सहारा मिल जाए
वो मौत हंसी होगी कितनी
ये चाँद सितारे कहते है
@मीना गुलियानी
खुद को भी बेगाने लगते है
तन्हाई से घबरा जाते है
परछाईं से खुद की डरते है
मंजिल की तमन्ना में भटके
काँटो से गुज़रते आये है
अब पाँव के छाले भी रिसते
हर गाम पे उठते गिरते है
रुसवाइयों के डरकर तो हमने
चेहरे पे नकाब भी पहनी मगर
ये शहरे वफ़ा के लोग हमें
हर मोड़ पे घूरा करते है
ऐ काश कोई हमदम होता
जख्मों को मेरे सहला देता
बेदर्द ये दुनिया वाले तो
हर जख्म कुरेदा करते है
बाहों का तुम्हारी गर मुझको
दम भर जो सहारा मिल जाए
वो मौत हंसी होगी कितनी
ये चाँद सितारे कहते है
@मीना गुलियानी
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