बीती विभावरी जाग री
अंबर पनघट में डुबो रही
तारघट उषा नागरी
किसलय पराग मकरन्द लिए
भंवरे करें गुन्जन किसलिए
चारुचन्द्र की चंचल किरणें
जो खेल रहीं थी जल थल में
अब वो भी हो गई विलीन
सूर्योदय से अस्ताचल में
तारागण भी लगे ढूंढने उनको
नीरव निशीथ अंबर में
जागे है पंछी हुआ सवेरा
फैला है चहुँ ओर उजाला
भोर हुई है जागो मोहन
भर भर लाई रीता प्याला
जाग उठे वीणा के सुर भी
जग हुआ सुनकर मतवाला
नृत्य करती है धरा भी
पीकर प्रेम की मधुमय हाला
@मीना गुलियानी
अंबर पनघट में डुबो रही
तारघट उषा नागरी
किसलय पराग मकरन्द लिए
भंवरे करें गुन्जन किसलिए
चारुचन्द्र की चंचल किरणें
जो खेल रहीं थी जल थल में
अब वो भी हो गई विलीन
सूर्योदय से अस्ताचल में
तारागण भी लगे ढूंढने उनको
नीरव निशीथ अंबर में
जागे है पंछी हुआ सवेरा
फैला है चहुँ ओर उजाला
भोर हुई है जागो मोहन
भर भर लाई रीता प्याला
जाग उठे वीणा के सुर भी
जग हुआ सुनकर मतवाला
नृत्य करती है धरा भी
पीकर प्रेम की मधुमय हाला
@मीना गुलियानी
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