यह ब्लॉग खोजें

गुरुवार, 3 मार्च 2016

दिल को कैसे धीर बँधायें


हम  दिल को कैसे धीर बँधायें
कैसे इसके सूनेपन को मिटाएँ

                 यह तो हवा चलने से काँप उठता है
                 ज़माने की ठोकरों से भी डरता है
                कैसे हम इसका डर दूर भगाएँ

इस दर्दे गम की दवा क्या  है
तुम्हीं बताओ माज़रा क्या है
किसे हम हाल दिल सुनायें

                   कैसे सुकून मिलेगा इस ज़माने में
                 थक चुके है हम  तोहमतेँ उठाने में
                 थकान इस  जिया की कैसे मिटाएँ

गम से बोझिल हुआ मन दूर तेरे जाने से
जी उठेगा फिर बुझा मन एक तेरे आने से
दिल के अरमानो को फिर से हम जगाएं 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें