खाई थी कसम तूने ओ सनम इक बार किसी के होने की
अब लौटके फिर से आती है आवाज़ वो पूरे होने की
तुम पत्थरदिल इंसान न थे किसने तुम्हे ऐसा बना डाला
किसने तुमको मोम के साँचे से ढलकाकर पिघला डाला
अरमानो की चिता से आती है आवाज़ किसी के रोने की
इस राख की चिंगारी में ओ सनम अरमान सुलगते है मेरे
तुम ढूँढ़ न पाओगे मुझको पाओगे न कभी तुम निशां मेरे
फरियाद ये फिर भी करती हूँ आबाद तेरे खुश होने की
@ मीना गुलियानी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें