बात इतनी बढ़ी कि उलझन में पड़ गए
न पता था ऐसा भी कभी दोराहा आएगा
हम तो बेखुदी में जहाँ को भूल बैठे थे
क्या पता था ज़माना ये कहर ढायेगा
जिस आशियाने को फूंक दिया
इस ज़माने की चिलमन ने
कबसे हम बैठे इस फिराक में है कि
कभी अपना मुक़ददर जगमगाएगा
हम अपनी बर्बादी का सितम देख चुके है
देखते है ज़माना और क्या गुल खिलायेगा
@मीना गुलियानी
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